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पत्र : धरमशी भानजी खोजाको

हम जिन लोगोंके बारेमें यह समझते हैं कि उन्होंने मोक्ष प्राप्त कर लिया है यह पूर्णतः सम्भव है कि उन्होंने वस्तुतः मोक्ष प्राप्त न किया हो। लेकिन जिन्होंने सचमुच मोक्ष प्राप्त कर लिया है वे तो भगवानके ही स्वरूप हैं; क्योंकि परमात्मासे भिन्न उनको कल्पना ही नहीं की जा सकती। इससे अगले प्रश्नको मैं समझ नहीं सका हूँ। मैं स्त्रियों के द्वारा घूंघट निकाले जानेके विरुद्ध हूँ क्योंकि इससे पुरुषकी अपनी पामरता प्रकट होती है और यह अबला स्त्री-जातिपर अत्याचार है। मैं जो कदम उठाता हूँ अथवा उठाने के लिए कहता हूँ, हो सकता है, वह भविष्यमें सुखकर बनने के बजाय भयावह बन जाये। परन्तु मेरा तो यही दृढ़ विश्वास है कि मेरे प्रत्येक कदमका परिणाम भविष्य सुखकर ही होगा। यदि मेरा विश्वास ऐसा न हो तो मेरा सत्य दूषित हो जाये और मुझे कर्मतः आत्महत्या करनी पड़े, क्योंकि मौन रहकर भी मैं अपनी कल्पनामें अनेक संसारोंका सृजन करता रहूँगा। मुहम्मद साहबके जीवनमें उनके दयाभावके अनेक दृष्टान्त मिलते हैं। महावीर भगवान द्वारा धर्म और व्यवहारके अलग-अलग बाड़े बनाये जानेकी मुझे खबर नहीं है। जहाँतक मैं जैन धर्मको जानता हूँ वहाँतक मुझे तो ऐसा लगता है कि उसमें ऐसे बाड़े नहीं हैं और भाषा जहाँ-जहाँ भेदसूचक देखने में आती है वहाँ-वहाँ उस भाषाका, मैं जो-कुछ कहता हूँ उससे मेल बिठाया जा सकता है। उदाहरणार्थ महाव्रत और अणुव्रत धर्म ढोल बजा-बजाकर कहते हैं कि हम सबको महाव्रतोंका ही पालन करना चाहिए। लेकिन यदि हम उनका पालन न करें तो पापी बनने के बजाय अन्ततः अणुव्रतोंका पालन तो करें ही।

बन्दूक बनानेवाला बन्दूकसे होनेवाली प्राणहानिके लिए थोड़ा-बहुत उत्तरदायी अवश्य होता है। मनुष्य जन्मका उद्देश्य तो यह दिखता है कि वह आत्माके स्वरूपको पहचाने। जो रूढ़ि मनुष्य-स्वभावके विरुद्ध है वह रूढ़ि तो तोड़ी ही जानी चाहिए, क्योंकि वह अन्ततः एक-न-एक दिन तो टूटेगी ही । यदि कोई छोटा बच्चा आगमें हाथ देने लगे तो माँ-बापको और अन्य लोगोंको भी उसका हाथ आगके पाससे खींच लेनेका अधिकार है। इससे अधिक अधिकार किसीको नहीं।

जब ईश्वरने मनुष्यको किसीको जीवन देनेकी शक्ति प्रदान नहीं की है तब उसे किसीके प्राण लेनेकी शिक्षा देनेका अधिकार कैसे हो सकता है? मुझमें हस्तमैथुनकी कुटेव कभी रही ही नहीं। आज भी यह बात मेरी समझमें नहीं आती। मैं इसकी चर्चासे ही काँप जाता हूँ। हस्तमैथुनकारी मनुष्यके शरीर और मन दुर्बल हो जाते हैं, इसमें मुझे तनिक भी सन्देह नहीं। मैं ऐसे अनेक मनुष्योंके उदाहरण जानता हूँ। इस कुटेवको दूर करनेका उपाय तो यही है कि ऐसे मनुष्य, जो इस कुटेवको छोड़ना चाहें, एक पलके लिए भी अकेले न रहें, हाथ और शरीरपर यथाशक्ति संयम रखें, जो पच सके ऐसा सात्विक आहार करें, खुली हवामें घूमें-फिरें और रामनाम जपें।

इस कुटेवसे मुक्त होनेका उपाय विवाह कर लेना नहीं है। पाँच-सात अथवा दस वर्षके बालकमें यह कुटेव पड़ जानेका कारण विवाह न होना थोड़े ही है? मैं तो बालविवाहसे उत्पन्न अपरिमित दुःखोंको कदम-कदमपर देख पाता हूँ। बाल-

विवाहोंसे कोई भी लाभ हुआ है, ऐसा मेरे देखनेमें नहीं आया।

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