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१३६. कातनेका अर्थ

एक महाशयने कताईकी दृष्टिसे सदोष, मैला और खराब अटेरा हुआ सूत भेजा है। उन्होंने उसकी लम्बाईका माप भी स्वयं नहीं निकाला है और लिखा है:

आपने चरखा संघमें बहुतसे यज्ञार्थ सूत कातनेवालोंकी मांग की है; इसलिए में भी सूत कातना चाहता हूँ। मैं अपना सूत भेज रहा हूँ। यह कितने गज है, लिखें। कम होगा तो और भेजकर पूरा कर दूंगा। यहाँ पूनियाँ मिलनेमें बड़ी मुश्किल पड़ती है। क्या पूनियाँ आप भेजेंगे?

मान लीजिये कि हमारे इस मुल्कमें लोगोंने रोटियाँ बनाकर खाना बन्द कर दिया हो और जापानसे छोटी-छोटी अनेक सुन्दर आकृतियोंकी, रंग-बिरंगी कलापूर्ण और मुलायम रोटियाँ मँगाकर खाने लगे हों और मान लीजिए कि मुझ जैसा कोई दूरदर्शी इसमें हिन्दुस्तानका नाश ही देख रहा हो और चूँकि हम सब रोटियाँ बेलना, बनाना और पकाना भूल गये हों, वह इस बुराईको मिटाने के लिए रोटी बनानेको यज्ञ बताये और हम सबसे इस यज्ञके लिए रोटियाँ माँगे और कोई भारत-सेवक देशके हितकी आकांक्षासे प्रेरित होकर किसीसे आटेकी लोई माँग लाये और फिर उसकी तिकोनी कच्ची-पक्की और कुछ जली हुई तथा कुछ कच्ची होनेके कारण रास्ते में फफूंदी हुई रोटियाँ भेजे और उसके साथ पत्र लिखे, 'आपके रोटी-यज्ञके आह्वानपर मैंने भी उसमें अपना हिस्सा देनेका निश्चय किया है। आज कुछ रोटियाँ भेज रहा हूँ। उनकी तोल निकालकर मुझे लिखें। कम होंगी तो पूरी कर दूंगा। यहाँ आटेकी लोइयोंकी व्यवस्था नहीं है। क्या आप मुझे लोइयाँ नहीं भेज सकेंगे?' यदि कोई रोटी-यज्ञार्थी यह लिखे तो रोटी-शास्त्रको जाननेवाले सब इस यज्ञार्थीके यज्ञपर हँसेंगे और कहेंगे कि इस भाईको भारतके प्रति प्रेम तो है; परन्तु उसे उस प्रेमको कार्यरूप में व्यक्त करनेकी युक्ति ज्ञात नहीं है। मैंने रोटी-यज्ञके सम्बन्धमें जो यह लिखा है उसका औचित्य तो सभी स्वीकार करेंगे। परन्तु इसको सब शीघ्र स्वीकार नहीं करेंगे कि चरखेके यज्ञार्थी भाईने जो काम किया है वह ठीक इस काल्पनिक रोटी-यज्ञार्थीके समान ही है। यह दीर्घकालीन स्वभावसे उद्भूत अज्ञानका चिह्न है। हम चरखेके विषयमें सब-कुछ भूल गये हैं और जैसे हम रोटी बनानेकी कला भूल जायें तो भूखों मरेंगे, यह फौरन सबकी समझमें आ जाता है, वैसे ही चरखेके अभाव में हम आज भूखों मर रहे हैं, यह बात आसानीसे सबकी समझमें नहीं आती।

सच बात तो यह है, कातनेका अर्थ यह नहीं है कि किसी भी तरह चलते-फिरते खेल करते हुए जब चाहा तब सूतके मोटो-झोटे कुछ धागे निकाल लिये जायें। कातनेका अर्थ तो यह है कि कातनेके पहलेकी सब आवश्यक क्रियाएँ सीख ली जायें और स्वस्थचित्त होकर अच्छा एकसार सूत नियमपूर्वक आसनबद्ध होकर काता जाये। कते सुतपर पानीके छीटें मारना चाहिए। उसकी लम्बाई मालूम करनी चाहिए,