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सन्देश :'नायक' को

प्रयत्न करके खादीके उत्पादनमें वृद्धि करते जायें और उसकी किस्म सुधारते जायें। ऐसी धर्मवृत्ति भी उसीसे उत्पन्न हो सकेगी।

गुजराती प्रति (एस० एन० १९६६१) की माइक्रोफिल्मसे।

१३०. पत्र : नानाभाई भट्टको

आश्रम
साबरमती
शुक्रवार, ९ जुलाई, १९२६

भाईश्री ५ नानाभाई,

मैं इसके साथ अनुवादार्थ पुस्तकोंकी सूची भेज रहा हूँ। भाई मुनिकुमार इनमें से जो पुस्तक अच्छी लगे, पसन्द कर लें। पारिश्रमिककी दर क्या है, यह तो मैं भूल ही गया हूँ। हमें एक ही दर रखनी चाहिए। उन्हें निश्चित अवधिमें अनुवाद करके हमें दे देना चाहिए। उसपर हमारा पूरा अधिकार होगा। इस पुस्तकमालाके सम्पादक काका हैं, यह तो आप जानते ही होंगे। इसलिए जब काका उसे स्वीकार कर लेंगे तभी उसका पारिश्रमिक दिया जायेगा। यदि आप इन शर्तोंमें कोई परिवर्तन कराना इष्ट समझें तो मुझे लिखें। उनमें कुछ वृद्धि करनी हो तो उससे भी अवगत करायें। अन्तिम करार भाई शंकरलाल और काकाकी सहमति लेकर करना है। इसका कारण यह है कि मैंने इस विषयकी सब बारीकियाँ नहीं समझी है; इसलिए मुझसे भूल होना बिलकुल सम्भव है।

गुजराती प्रति (एस० एन० १९६६२) की माइक्रोफिल्मसे।

१३१. सन्देश : 'नायक' को

[१० जुलाई, १९२६ या उससे पूर्व ][१]

देशबन्धुकी स्मृतिका समादर करनेका सर्वोत्तम मार्ग यही है कि चरखा और खादीको लोकप्रिय बनायें और इस प्रकार विदेशी वस्त्रोंका बहिष्कार सम्पन्न करें।

[ अंग्रेजीसे ]
बॉम्बे क्रॉनिकल, १२-७-१९२६
  1. बॉम्बे क्रॉनिकलमें छपी फ्री प्रेसको रिपोर्टके अनुसार यह सन्देश एक बंगाली समाचारपत्र नायकके देशबन्धु अंकके लिए भेजा गया था, जो ११ जुलाई, १९२६ को प्रकाशित हुआ था।