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१२६. पत्र : सी० विजयराघवाचारियरको

आश्रम
साबरमती
९ जुलाई, १९२६

प्रिय मित्र,

आपने मुझसे कहा है कि यदि मैं मन्दिरके बारेमें आपके सुझावका समर्थन न कर सकूं तो आपको पत्र न लिखूं। फिर भी मैं आपको यह लिखे बिना नहीं रह सकता कि मैंने इसके बारेमें किसीसे बातचीत नहीं की है। अनसूयाबाई परिवारकी एक सदस्या-जैसी है । वह आती है और हर बातमें मुझसे सलाह लेती है। उसने इस चीजका भी जिक्र किया था और मैंने इसके बारेमें उससे बातचीत की थी। लेकिन आपको शायद मालूम नहीं कि यदि वह चाहे तो भी खुद कुछ नहीं दे सकती और अपने भाईके लेन-देनमें वह कभी दखल नहीं देती।

मेरा खयाल है कि श्री मगरिजके बारेमें मैंने आपको लिखा[१] था कि वह जब भी आयें, उनका स्वागत है। उनका एक पत्र भी मुझे मिला है जो अलवाईके क्रिश्चियन कालेजमें दिये गये उनके भाषणके[२] सम्बन्ध में है।

हृदयसे आपका,

अंग्रेजी प्रति (एस० एन० १०९५९) की फोटो-नकलसे।

१२७. एक पत्र[३]

आश्रम
साबरमती
९ जुलाई, १९२६

प्रिय मित्र,

आपका पत्र मिला। मुझे आपसे पूरी सहानुभूति है। यदि हालात वैसे ही हैं जैसे आप बताते हैं तो सचमुच दुःखकी बात है। मैं समझता हूँ कि जर्मनी जाकर अध्ययन पूरा करनेके आपके सुझावका मैं समर्थन नहीं कर सकता; हाँ, यह है कि उसके लिए रुपये-पैसेकी सहायता आपको दे सकता हूँ। जिन विद्यार्थियोंने असहयोग किया है, उन्हें केवल डाक्टरी पेशेकी या उन चीजोंकी बाबत जो साधारणतया कालेजों में ही सीखी जाती हैं, नहीं सोचना चाहिए। यदि उन्होंने स्वतन्त्रता

  1. देखिए "पत्र : सी० विजयराघवाचारियरको", १६-६-१९२६ ।
  2. देखिए "राष्ट्रीयता और ईसाई धर्म" २२-७-१९२६ ।
  3. पत्र किसको लिखा गया था यह ज्ञात नहीं है, लेकिन सम्भवतः यह वही छात्र है जिसका गांधीजीने "छात्र और असहयोग", १५-७-१९२६ में उल्लेख किया है।