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१२५. पत्र : श्रीमती आर० आर्मस्ट्राँग और श्रीमती पी० आर० हॉवर्डको

आश्रम
साबरमती
९ जुलाई, १९२६

प्रिय बहनो,

आपका पत्र[१] मिला। जितना आपको मालूम देता है, सत्य इतना सरल नहीं। 'हाथी और सात अन्धोंकी कथा' आप जानती हैं। सातों अन्धोंने हाथीको सचमुच स्पर्श किया था। उन सातोंने अलग-अलग अंगोंको स्पर्श किया था, इसीलिए हाथीके उनके वर्णन भी एक-दूसरेसे भिन्न थे। अपनी-अपनी दृष्टिसे वे सब सही थे, और फिर भी प्रत्येक वर्णन अन्य शेष लोगोंको असत्य लगता था; और सत्य उन सातोंके वर्णनसे अलग था। आप शायद मेरी इस बात से सहमत होंगी कि हम सब पूरी तौरपर इन सात ईमानदार प्रेक्षकोंकी-सी स्थितिमें हैं। उनकी तरह अन्धे हम भी हैं। इसलिए हमें सत्यकी प्रतीति जिस रूपमें हो उसपर ही विश्वास करके सन्तुष्ट हो जाना चाहिए। आप यह तो नहीं चाहेंगी कि मैं 'बाइबिल' की उक्तियोंकी प्रामाणिकता और व्याख्याके विषयमें कुछ चर्चा करूँ।

हृदयसे आपका,

श्रीमती रॉबर्ट आर्मस्ट्रांग

श्रीमती पॉल आर० हॉवर्ड
२२९३ ई० प्रोस्पेक्ट ५
किवानी, इलिनॉय

संयुक्त राज्य अमेरिका

अंग्रेजी प्रति (एस० एन० १०७७९) की फोटो-नकलसे।

  1. २० फरवरी १९२६ के एक पत्रमें श्रीमती आर्मस्ट्रांग और श्रीमती हॉवर्डने लिखा था : “चूँकि विश्वास है कि आप सत्यनिष्ठाको अच्छे आदमीका एक आवश्यक गुण मानते हैं, हम आपका ध्यान इस तथ्यकी ओर दिलाना चाहती हैं कि ईसा मसीहने कहा था “मैं और मेरे पिता एक ही हैं (हम दोनों में कोई भेद नहीं) (जॉन, १०:३०) और उन्होंने कुएंपर स्मेरिटन महिलाको बताया था कि मैं ही वह मसीह हूँ जिसकी तलाश की जा रही है" (जॉन, ४: २५-२६); इसलिए हमें ऐसा लगता है कि यदि आप किसी असत्याचरणवाले व्यक्तिको आदर्शकी तरह अपने सामने नहीं रखना चाहते, तो आप या तो ईसा मसीहको आदर्शके रूपमें स्वीकार कीजिए और उनके दावोंको सही मानिए था फिर आप उनको असत्याचरण करनेवाला पाखण्डी कहकर अपने मनसे बिलकुल निकाल दीजिए" उन्होंने अपने पत्र में यह भी लिखा था कि वे नित्य ही ईश्वरसे प्रार्थना करती हैं कि वह विश्वके त्राता, ईसामसीहको गांधीजीके सामने प्रकट कर दे और वे यह प्रार्थना तबतक करती रहेंगी जबतक कि उनको समाचारपत्रोंके माध्यमसे था स्वयं गांधीजीद्वारा पत्रके जरिए ऐसा शुभ समाचार नहीं मिल जाता कि गांधीजीने "उस शाश्वत जीवनको" अर्थात् ईसा मसीहको सचमुच पा लिया है। (एस० एन० १०७४३)।