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१२२. पत्र : लालचन्द जयचन्द वोराको

आश्रम
साबरमती
[८ जुलाई, १९२६ ][१]

भाई लालचन्द,

आपका पत्र मिला। मैं खादीके इस संक्रान्तिकालमें स्वतन्त्र लोगोंको केवल खादी भण्डारपर निर्भर रहनेका खतरा मोल लेनेकी सलाह नहीं दे सकता। उन्हें चरखा संघकी ओरसे अथवा किसी सार्वजनिक संस्थाकी ओरसे चलनेवाले भण्डारमें शामिल होकर काम करना चाहिए। इस तरह अनेक खादी प्रेमी काम कर रहे हैं।

मोहनदासके वन्देमातरम्

लालचन्द जयचन्द वोरा

सौराष्ट्र खादी भण्डार
४९, इजरा स्ट्रीट

कलकत्ता
गुजराती पत्र (सी० डब्ल्यू० ७७५२) की नकलसे।
सौजन्य : ला० ज० वोरा

१२३. पत्र : मोतीबहन चोकसीको

आश्रम
साबरमती
बृहस्पतिवार, ८ जुलाई, १९२६

चि० मोती,

तुम्हारा पत्र मिला। तुमने अपने आलसी होनेकी बात स्वीकार कर ली, मैं इससे भी थोड़ा-बहुत सन्तोष प्राप्त किये लेता हूँ। तबीयत ठीक रखनेके लिए दो बातें बहुत जरूरी हैं। नियमित निद्रा और सुपाच्य तथा परिमित आहार। पाखाना

बिलकुल साफ आना चाहिए। उसके बिना इटलीकी दवाकी गोली भी काम नहीं देती, ऐसा मैंने सुना है। किन्तु यदि पाखाना बिल्कुल साफ आये तो गोलीका लेना, न लेना बराबर है। उससे कोई फर्क नहीं पड़ता। परन्तु गोली लेना ठीक ही है।

  1. १. डाककी मुहरसे।