कि गुस्सा निकल ही जाने दिया जाये। बहरहाल उस व्याधिके मेरे पास जो उपचार हैं, वे इस समय तो बेकार ही हैं। मैं जानता हूँ कि उपद्रवियोंको मनमानी करनेका मौका मिला हुआ है और युवकोंके दिमागों में भी जहर काफी गहरा उतरता जा रहा है। यह सब-कुछ अनिवार्य-सा जान पड़ता है। निश्चय ही, यह न समझिए कि चूंकि मैं लिखता-बोलता नहीं हूँ, इसलिए मैं कुछ कर ही नहीं रहा हूँ।
आशा है कि दिल्ली आप और श्रीमती लेले दोनोंको माफिक आ गई होगी। आपने मुझे पत्र लिखा, यह खुशीकी बात है।
हृदयसे आपका,
३००८, बर्न बेस्शियन रोड
अंग्रेजी प्रति (एस० एन० ११०७६) की फोटो-नकलसे।
११९. पत्र : वी० एस० श्रीनिवास शास्त्रीको
आश्रम
साबरमती
८ जुलाई, १९२६
श्री अम्बालालने मेरे पत्रके[१] जवाबमें जो चेक[२] भेजा है सो साथमें भेज रहा हूँ। जमनालालजीने मुझे बताया कि वे जो-कुछ भेज सकते थे, उन्होंने आपको भेज दिया है। बिड़लाजीने अभी मुझे कोई जवाब नहीं दिया है। देख रहा हूँ कि रकमें धीरे-धीरे मिल रही हैं।
हृदयसे आपका,
संलग्न : एक पत्र और २०० रुपयेका एक चेक।
अंग्रेजी प्रति (एस० एन० १९६५८) की माइक्रोफिल्मसे।