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पत्र: पुरुषोत्तम रामचन्द्र लेलेको

कुप्रथाको अवश्य ही नेस्तनाबूद कर डालेगी··· परन्तु मनुष्य इतने बुद्ध और स्त्रियाँ इतनी कायर हैं कि वह किसी ऊँचे सिद्धान्तका आग्रह ही नहीं कर सकते।

अब ब्यूरो इन दुराचरणोंके फलोंपर और उन सिद्धान्तोंपर जिनसे इन दुराचरणोंका मण्डन किया जाता है, सूक्ष्म विचार करनेके बाद कहता है:

यह भ्रष्टाचार हमारी किस्मतको एक नई दिशामें ढकेलकर ले जा रहा है। उसका स्वरूप कैसा है? हमारा भविष्य प्रकाशमय होगा या अन्धकारमय? उन्नति होगी अथवा अवनति? वहाँ पहुँचकर हमारी आत्माको सौन्दर्यके दर्शन होंगे या कुरूपता और पशुताकी वह भयानक मूर्ति दिखाई देगी जो बलिदानपर बलिदान माँगते हुए अघाती नहीं है। यह क्रान्ति क्या वैसी कोई क्रान्ति है जो समय-समयपर देश और जातियोंके उत्थानसे पहले होती है और जिसमें उन्नतिका बीज छुपा रहता है और पोढ़ियाँ कृतज्ञ भावसे जिसे याद करती रहती हैं; अथवा यह वही क्रान्ति है जिसने आदमके हृदयमें उथल-पुथल मचा दी थी और जो जीवनके बहुमूल्य और आवश्यक सिद्धान्तोंके हृदयमें बल पकड़ने के विरुद्ध सिर उठाती है? हम जिस अनिष्टकर विद्रोहको देख रहे हैं क्या वह शान्ति और जीवनको रक्षा करनेवाले अनुशासनके विरुद्ध ही तो नहीं है?

फिर ब्यूरो प्रचुर प्रमाणों सहित यह दिखाता है कि अबतक तो फल हर दृष्टि से एकके बाद एक अनर्थकारक ही रहा है। लगता है इससे समूचा जीवन ही नष्ट हो जायेगा।

[ अंग्रेजीसे ]
यंग इंडिया, ८-७-१९२६

११८. पत्र : पुरुषोत्तम रामचन्द्र लेलेको

आश्रम
साबरमती
८ जुलाई, १९२६

प्रिय मित्र,

आपका पत्र[१] मिला। मैं आपकी बात समझता हूँ और उसकी कद्र भी करता हूँ; लेकिन आप मेरी लाचारी नहीं समझ सकते। फिलहाल मैं हताश नहीं हूँ। मुझे भरोसा है कि हालात बेहतर हो जायेंगे, लेकिन अभी इस समय तो मेरा खयाल है

  1. इस पत्र में लेलेने बताया था कि कैसे कुछ हिन्दुओंने एक बैलको तंग करनेके कारण मुसलमान लड़कोंको गालियां दी थीं। उनका ख्याल था कि हिन्दुओंको गोवध बन्द करने की मांग करनेका कोई हक नहीं है और उनके आन्दोलनको रोकनेकी जरूरत है।