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अनीतिकी राहपर - २

लाना छोड़ देगा वह अपना और विदेशियों, दोनोंका भला करेगा। इससे विदेशी कारीगर भूखों नहीं मर जायेंगे। उन्हें दूसरे उपयोगी धन्धे मिल जायेंगे। यदि वे स्वयं ही भारतके लिए कपड़ा बनाना बन्द कर दें तो वे संसारके एक बड़े उपयोगी आन्दोलनमें सहायक बनेंगे।

[ अंग्रेजीसे ]
यंग इंडिया, ८-७-१९२६

११७. अनीतिकी राहपर— २

ब्यूरो कहता है कि गर्भपातके प्रचलनके साथ-साथ बालहत्या, कुलके अन्दर ही व्यभिचार और अन्य कितने ही ऐसे पाप बढ़ गये हैं, प्रकृति जिन्हें बर्बाश्त नहीं कर सकती। अविवाहित अवस्थाम गर्भ स्थिर न होने देनमें और गर्भपात करा देने में सब प्रकारसे सहायता पहुँचाई जाती है; फिर भी बाल-हत्या बहुत बढ़ गई है। सभ्य कहलानेवाले पुरुषोंके कानपर जूं भी नहीं रेंगती और बालहत्याके अपराधी अदालतोंमें आमतौरपर 'बेकसूर' करारकर दिये जाते हैं।

ब्यूरो एक अध्याय केवल अश्लील साहित्यपर ही लिखता है। वह इसे साहित्य, नाटक और चित्र इत्यादिका जो मनुष्यके मनको आनन्द और स्वास्थ्य देनेके लिए हैं, अश्लील उद्देश्य साधने के लिए एक बड़ा दुरुपयोग कहता है। जगह-जगह ऐसा साहित्य बेचा जाता है और कोने कोनेमें उसीकी चर्चा होती रहती है। बड़े-बड़े बुद्धिमान मनुष्य इस साहित्यको तिजारत करते हैं और करोड़ों रुपये इस व्यापारमें लगे हुए हैं। और उसके प्रचार के लिए प्रयुक्त बेजोड़ तरीकोंसे हमें अनुमान हो जाता है कि यह व्यापार कितना फैल चुका है। इस साहित्यका लोगोंके हृदयोंपर बड़ा विषैला प्रभाव हुआ है और इस साहित्यने उनके मनमें विचारोंका एक नया व्यभिचार-पूर्ण संसार ही रचकर खड़ा कर दिया है।

फिर ब्यूरो श्री रुइसनका यह दर्दनाक वाक्य उद्धृत करता है:

अश्लील और सम्भोग विषयक इस साहित्यकी बिक्रीका रहस्य इस मनोवैज्ञानिक बातमें है कि वह अनगिनत पाठकोंको अपनेमें गर्क करके उन्हें अपना गुलाम बना लेता है। इस साहित्यको पढ़नेवालोंकी नित्य बढ़ती हुई संख्यासे यह जाहिर हो जाता है कि पागलखानोंसे बाहर भी करोड़ों पागल रहते हैं। जिस प्रकार पागल अपनी एक निराली ही दुनियामें रहता है उसी प्रकार इसे पढ़नेवाले लोग अपनी कल्पनाके एक यौन संसारमें पहुँच जाते हैं। हमारी आजको दुनियामें यह असम्भव नहीं है; क्योंकि समाचारपत्रों और किताबों की भरमारने हमारी चेतनाको, डब्ल्यू० जेम्सके शब्दोंमें, 'न जाने