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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

नियमोंका यह मसविदा बनाया तो शिक्षा मन्त्रीने ही है; क्योंकि वह लोगोंके प्रति अर्थात् गिने-चुने मतदाताओं के प्रति उत्तरदायी माना जाता है। किन्तु चूँकि उसे प्रत्यक्षतः गाँवोंकी दशाका कोई ज्ञान नहीं है, इसलिए वह समझता है कि प्रारम्भिक शालाओं में सूत कताई सिखाना अनावश्यक है। इसलिए सूत कातनेपर स्पष्ट प्रतिबन्ध लगाने के बजाय वह इस प्रकारका निर्णय देकर अड़ंगा लगाना चाहता है "सार्वजनिक शिक्षा विभागके निदेशकसे पहले मंजूरी लिये बिना चौथे दर्जेसे नीचेके दर्जामें कोई क्रियात्मक शिक्षा शुरू न की जाये" क्रियात्मक शिक्षा सामान्यतः उस क्षेत्र या उन छात्रों के वर्गसे सम्बद्ध मुख्य धन्धे अथवा उद्योगसे सम्बन्धित होनी चाहिये" और जबतक बुनाईकी व्यवस्था न हो तबतक ऐसी किसी संस्थामें सूत कातना एक विषयके रूपमें न रखा जाये।" यह अन्तिम शर्त किसी भी मामूली प्रारम्भिक शालामे सूतकी कताई रोकनेके लिए काफी है। क्योंकि मुश्किलसे ही कोई प्रारम्भिक शाला ऐसी होगी जो बुनाई-शिक्षकका खर्च उठा सके और जिसमें करघा लगाने लायक काफी जगह हो। असलमें अनुभवसे यह देखा गया है कि मामूली स्कूलके लिए चरखा भी महँगा पड़ता है और उसमें चरखा रखने लायक जगह भी नहीं होती। इसलिए अखिल भारतीय चरखा संघ सब शालाओंके शिक्षकोंको और नगरपालिका परिषदोंको यह सलाह दे रहा है कि वे अपनी शालाओंमें तकली शुरू करें। तकली सस्ती और सुविधाजनक होती है, उसको रखने में कोई जगह नहीं घिरती और वह आसानीसे खराब भी नहीं होती। यह बात आश्चर्यजनक भी है कि शिक्षामन्त्री और उसके सलाहकार यह अनुभव नहीं करते कि सुत कताईको दूसरे धन्धोंके स्तरपर रखकर नहीं देखा जा सकता और न उसे इस तरह देखा ही जाना चाहिए। जैसे कि श्री चक्रवर्ती राजगोपालाचारीने मद्रास अहातेके स्थानीय निकायोंसे अनुरोध करते हुए कहा है, यह प्रधानतः एक सार्वजनिक राष्ट्रीय धन्धा है जिसे मृतप्राय हो जानेके कारण पुनर्जीवित करके लोगों में प्रचलित करना आवश्यक है। जो धन्धे चल रहे हैं, प्रारम्भिक शालाओंमें उनकी शिक्षा देना वक्त और रुपयेकी बेकार बरबादी करना होगा क्योंकि बच्चे उन उद्योगोंको उन शिक्षकोंसे, जिन्हें उनका सैद्धान्तिक ज्ञान है और जो उनकी तरफसे उदासीन हैं, सीखने के बजाय अपने माँ-बापसे ज्यादा अच्छी तरह और जल्दी सीख सकते हैं। इसलिए मुझे यह जानकर प्रसन्नता हुई है कि चित्तूर जिलेकी शिक्षा परिषदने इस मसविदेको नामंजूर कर दिया है। मैं आशा करता हूँ कि दूसरे स्थानीय निकाय भी ऐसा ही करेंगे।

[ अंग्रेजीसे ]
यंग इंडिया, ८-७-१९२६