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टिप्पणियाँ

कमसे-कम छः सच्चे ग्राम संगठनका कार्य करनेवालोंका खर्चा उठानेका वादा करे तो यह ज्यादा बड़ी देश-सेवा होगी।

पत्र बहुत लम्बा था, पर उसमें से मैंने यह छोटा-सा ही अंश लिया है। मैं तो यह मानता हूँ कि त्यागकी कोई सीमा नहीं होती। त्याग यदि सोच-विचार और हिसाब लगाकर सौदेकी भाँति किया जाये तो वह त्याग नहीं होता। लोगोंने दूसरे देशों में स्वतन्त्रताकी रक्षा या प्राप्तिके लिए जैसे त्याग किये हैं, उनसे अधिक तो मैंने कुछ नहीं मांगा। हमारे देश में भी ऐसे अपूर्व आत्मत्यागके अगणित उदाहरण हैं। त्याग विश्वाससे होता है; हमारे देशवासियोंमें आज विश्वासका अभाव है।

प्रपंची चेलोंसे मैं क्या त्यागनेको कहूँ? उनसे तो कोई आशा ही नहीं है। संसारका यही नियम है कि त्यागी ही त्याग करते हैं; और किसीके दबाव या कहने-सुननेसे नहीं, बल्कि स्वेच्छासे। उनको तो त्याग करने में ही आनन्द आता है। सब-कुछ त्यागकर चुकनेपर भी उनको यही पछतावा रहता है कि हाय, हम अधिक त्याग नहीं कर सके।

मुझे अभीतक तो एक भी ऐसा उदाहरण नहीं मिला कि कोई सच्चा, मेहनती और बुद्धिमान कार्यकर्ता कामके अभावमें भूखों मर रहा हो। कठिनाई तो तब उत्पन्न होती है जब कोई कार्यकर्ता शर्तें रखता है अथवा उसकी आवयश्यकताएँ ऐसी होती हैं कि यदि वह रीति-रिवाजोंकी परवाह न करे और भावुकताके वशीभूत न हो तो उन आवश्यकताओंका सवाल ही न उठे। और देशमें सामाजिक आन्दोलन तो थोड़ेसे अमीर देशभक्त ही चला रहे हैं। मेरा निजी अनुभव है कि यदि सच्चे और योग्य आदमी किसी अच्छे कामको लेते हैं तो रुपया भी आ ही जाता है। दिन-प्रतिदिन गाँवोंमें कार्य करनेवाले नौजवानों की संख्या बढ़ रही है; फिर भी अभी इससे दसगुने कार्यकर्ताओंकी आवश्यकता है। काम और रुपयेकी कोई कमी नहीं है। हाँ, कमी ऐसे कार्यकर्त्ताओंकी है जो देशकी दशाके अनुसार अपने गुजारेके लिए थोड़ा वेतन लेकर सेवा कर सकें। मेरी देखभालमें ही खादी, अछूतोद्धार, राष्ट्रीय शिक्षा, गो-पालन और चमड़ा पकाने इत्यादि के कई काम होते हैं। बहुतसे कार्यकर्त्ता तो उन्हींमें लग सकते हैं।

कुएँसे निकलकर

मद्रास सरकारने प्रारम्भिक शालाओं सूत कातने से सम्बन्धित नियमोंका मसविदा प्रकाशित कर दिया है। इससे जाहिर हो जाता है कि जहाँ सरकार लोकमतकी उपेक्षा कर सकती है वहाँ उत्तरदायी शासनमें भी क्या-क्या नहीं हो सकता। जो सरकार एक तरहसे जमींदारोंके मतोंपर निर्भर हो वह अपने मतहीन किसानोंकी माँगके साथ न्याय कैसे कर सकती है? उत्तरदायी शासन जब नाममात्रके लिए उत्तरदायी हो तब परिस्थिति बिलकुल निरंकुश सरकारके शासनसे भी बदतर हो जाती है। निरंकुश सरकार किसी वर्ग विशेषके मतोंपर निर्भर नहीं होती, इसलिए वह सबके साथ निष्पक्ष बरताव कर सकती है, किन्तु उत्तरदायी सरकारमें इतनी हिम्मत नहीं होती।