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पत्र : आ० टे० गिडवानीको

बहन भी आ गई है जिसकी हम राह देख रहे थे। वह भी अब यहाँके जीवनको अभ्यस्त हो गई है। मैं बिलकुल चंगा हूँ। देवदास मसूरीमें है। तुम जानती हो कि उसने एपेन्डिक्सका ऑपरेशन कराया था। वह अब बिलकुल ठीक हो गया है। तुम्हें अब यहाँ पूर्णतया स्वास्थ्य लाभ करके ही लौटना चाहिए।

तुमने श्री बहादुरजीका जो सूत जाँचके लिए भेजा था[१] वह घटिया तो नहीं था। जाँच करनेपर उसका मजबूतीका अंक करीब ५० निकला। बुनाईके लिए असलमें सूतका मजबूतीका अंक ६० दरकार है। हम लोग इन दिनों कातनेकी रफ्तार तेज करने के बजाय सुतकी मजबूती बढ़ानेपर ही सारा ध्यान लगा रहे हैं। अब यहाँ ९० अंक मजबूतीका सुत निकलने लगा है। इस महीने के अन्ततक हम शायद कोई १०० अंक मजबूतीका सूत भी निकालने में कामयाब हो जायें।

तुम्हारा,

नरगिस बहन
जेनेवा

अंग्रेजी प्रति (एस० एन० १९६५३) की माइक्रोफिल्मसे।

११०. पत्र : आ० टे० गिडवानीको

आश्रम
साबरमती
७ जुलाई, १९२६

प्रिय गिडवानी,

आशा है कि अपना नया वातावरण तुम्हें अबतक ठीक बैठ गया होगा।

तुम्हें यह जानने में दिलचस्पी होगी कि जिस दिन तुमने मुझे अंगूरोंकी बाबत जानकारी दी थी, मैंने उसी दिन नारणदासको पत्र[२] लिख दिया था और उसे तार देने को कहा था उसने तार द्वारा सूचित किया कि वह मेरे पत्रका जवाब दे रहा है। उससे मैंने उसी क्षण यह निष्कर्ष निकाला है कि तुमने जिस भयानक बातकी आशंका व्यक्त की थी, वह सच है। वादेके बाद भी अबतक उत्तर नहीं आया। इसी बीच हातमका एक तार मिला। उसने कहा कि यदि मैं उपवास न करनेका वादा करूँ, तो मुझे पूरी जानकारी दे दी जायेगी। बेचारा सीधा-सादा हातम, मानो इस तारसे ही मुझपर वह सब स्पष्ट न हो गया हो जो मैं पहलेसे जानता था। मैंने अंगूर खाना तो नारणदासका तार पाते ही बन्द कर दिया था

हृदयसे तुम्हारा,

अंग्रेजी प्रति (एस० एन० १९६५४) की माइक्रोफिल्म से।

  1. देखिए “पत्र : डी० एन० बहादुरजीको”, १९-६-१९२६ ।
  2. देखिए "पत्र : नारणदास आनन्दजीको", २९-६-१९२६ ।