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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

चरखे, ५० तकलियाँ, ३२ तकुए, १०५ रतल पूनियाँ, ४० रतल सुत, रुई पींजनेकी ६० धुनकियाँ, २९ चरखे और ५६ अटेरन बेचे गये। उपर्युक्त हिसाबमें आने पाई छोड़ दिये हैं। विदेशी वस्त्रके बहिष्कारकी दृष्टिसे यह हिसाब भले ही उपहासास्पद जान पड़े; लेकिन खादीकी स्वतन्त्र प्रगतिकी दृष्टिसे, गरीबोंकी मददकी दृष्टिसे तथा मध्यम वर्गके उन स्त्री-पुरुषोंकी दृष्टिसे जो सेवा करके ही आजीविका प्राप्त करना चाहते हैं, यह हिसाब हास्यास्पद नहीं है, आशाजनक है। जैसे-जैसे कार्य करनेकी शक्ति बढ़ती जायेगी, जैसे-जैसे आत्मविश्वास बढ़ता जायेगा, वैसे-वैसे खादीकी प्रगति तेजीसे होती चली जायेगी। यदि कोई वस्तु देश-व्यापक हो सकती है तो वह खादी ही है। जो लोग आलस्य छोड़कर विचार करेंगे वे अवश्य इसे समझ जायेंगे।

[ गुजरातीसे ]
नवजीवन, ४-७-१९२६

१०३. पत्र : वी० ए० सुन्दरम् को

[ साबरमती ]
सोमवार [५ जुलाई, १९२६ ][१]

प्रिय सुन्दरम्,

तुम्हारा सुखद पत्र मिला। तो अब तुम मुझे हर सोमवारको तमिलका एक पाठ और कोई अच्छी बात लिखकर भेजोगे। तुमने जितने तमिल पाठ मुझे भेजे हैं, वे सब मैंने अलबत्ता तुम्हारी ध्यानपूर्वक तैयार की हुई व्याख्याके सहारे समझ लिये हैं।

तुम सबको प्यार। मैंने तुम्हारा प्रस्ताव देवदासको बता दिया है। लेकिन वह शायद ही आये। अंब वह बिलकुल चंगा है।

तुम्हारा,
बापू

सुन्दरम्,

द्वारा श्रीमती स्टोक्स
कोटगढ़

बरास्ता शिमला

अंग्रेजी प्रति (जी० एन० ३१८२) की फोटो-नकलसे।

  1. डाककी मुहरसे।