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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

केवल १६४ रुपये खर्च हुए हैं। इस जिलेमें अकाल-जैसी स्थिति थी, इसलिए सस्ती पूनियाँ भी काममें लाई गईं। करीब ५० कुटुम्बोंमें आठ मन पूनियाँ छ: आने रतलके हिसाबसे बेची गईं। इनसे मुख्यतः स्त्रियों के ही वस्त्र बनाये गये हैं। हिसाबके अनुसार इसमें ५० रुपये से अधिक नहीं लगाने पड़ेंगे। इसके अतिरिक्त अकालके ही कारण जीविका देनेकी दृष्टिसे कपासकी खरीद की गई और सूत कतवाया गया। अबतक २९५ मन कपास कार्यालय में ही ओटी गई है। उसकी पूनियाँ बनाई गई हैं और अब उनसे सूत कतवाकर कपड़ा बुनवाया जा रहा है। कपासकी ओटाईपर ११० रुपये खर्च आया। कपासमेसे ९३¾ मन रुई निकली और १९० मन बिनौले। सूत ४ से ८ अंकतक का काता जाता है। उसकी कताई प्रति अंक पाँच पाई दी जाती है। धुनाई और पुनियोंकी बनवाईका खर्च २¾ मन दिया जाता है और बुनाईका ८ रुपया मन। खादीका अर्ज २४ से २७ इंच तक होता है। एक मन खादीकी लम्बाई ११० से ११५ गज होती है। जो खादी तैयार होती है उसे भाई शंभुशंकर अपने क्षेत्रमें ही बेचनेका प्रयत्न करते हैं। इस तरह उन्होंने सत्रह आनेकी छ: हाथके हिसाबसे ९६२ गज खादी बेची है— इस हिसाबसे गजके पाँच आने हुए। एक मन सूत हर रोज बुना जाता है। इसके अतिरिक्त इस केन्द्रमें अमरेली खादी कार्यालयकी खादी भी बुनी जाती है। यह चौड़ाई ३० इंच होती है। इस कार्यालयका काम बहुत अच्छी तरह और थोड़े खर्चसे चलता है और उसका खास कारण भाई शम्भुशंकरका कातनेवालों, धुननेवालों और बुननेवालोंसे सम्पर्क और निकट सम्बन्ध जान पड़ता है। मेरे पास जितने खादी कार्यालयोंके आँकड़े आते हैं, मैं उन्हें छापता रहता हूँ। अभिप्राय यह है कि सब कार्यालय एक-दूसरेसे शिक्षा और शक्ति लें। उन सबमें आपसमें स्वस्थ और मीठी होड़ हो, यह सराहनीय है। यह क्षेत्र इतना बड़ा है कि इसमें हजारों सेवक अपनेको खपा दे सकते हैं और हजारों अपनी आजीविका कमा सकते हैं। जिनको इस कार्यसे प्रेम हो जाये और जो यह समझते हैं कि ग्रामीण जीवन इससे काव्यमय बन सकता है, वे इस कार्यमें पूर्ण आनन्द प्राप्त कर सकते हैं।

[ गुजरातीसे ]
नवजीवन, ४-७-१९२६