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९५. पत्र : सतकौड़ीपति रायको

आश्रम
साबरमती
२ जुलाई, १९२६

प्रिय मित्र,

आपका तार मिला। लेकिन ऐसी खबरें हमेशा ज्यादा तेजीसे फैल जाती हैं। भोम्बलकी मृत्युका समाचार मुझे आपके तार से चौबीस घंटे पहले मिल चुका था। मैंने सुधीरको संवेदनाका तार भेजा था और बासन्तीदेवीको भी पत्र द्वारा यथासम्भव सान्त्वना दी थी।

आशा है कि आप स्वस्थ होंगे। बंगालकी स्थिति अब ठीक हो रही होगी।

हृदयसे आपका,

बाबू सतकौड़ीपति राय

भवानीपुर

कलकत्ता

अंग्रेजी प्रति (एस० एन० १९६४९) से।

९६. पत्र : रामेश्वरदास पोद्दारको

आश्रम
साबरमती
शुक्रवार [२ जुलाई, १९२६][१]

भाई रामेश्वरजी,

आपका पत्र मिला। ईश्वर तो हमारी परीक्षा लेता है। 'रामनाम' लेते हुए सारा जन्म चला जाय तो भी क्या हुआ? इससे बढ़कर कोई इलाज नहीं है ऐसा विश्वास कर 'रामनाम' लेना चाहिए।

आपका,
मोहनदास

मूल पत्र (जी० एन० १६४) की फोटो-नकलसे।

  1. डाककी मुहरसे।