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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

हम चाहते हैं कि सरकारी कालेजके ही नहीं, अन्य कालेजोंके भी सभी छात्र पटना कालेजके छात्रोंकी भाँति खादीके अर्थशास्त्रको समझें और जब कभी किसीको भेंट देनेका अवसर आये, वे उनके इस कार्यका अनुकरण करें।

मैसूर में खद्दर

एक पत्र-लेखक लिखते हैं :

मैसूर नगरमें कुछ खादी प्रेमियोंने जुलाई १९२५ से एक सहकारी समिति आरम्भ की है। चूँकि यहाँ खादीका पर्याप्त उत्पादन नहीं होता इसलिए व्यवस्थापक अभी आन्ध्र, तमिलनाड और कर्नाटकसे खादी मँगाते हैं। समिति अपनी पूँजीको बढ़ाना चाहती है। इस समय उसके १०-१० रुपयेके ३६५ हिस्से किये जा चुके हैं। हिस्सेदारोंके लिए अपने हरएक हिस्सेपर एक रुपया प्रतिमास देना आवश्यक है। कुछ सदस्य अपनी पूरी रकम दे चुके हैं। समिति के १०३ सदस्य हैं। समितिकी दूकान यहाँ कते हुए सूतको १२ आने प्रति रतलके हिसाबसे खरीद लेती है और फिर वह उसे यहीं बुनवा लेती है। समिति दूकानके रख-रखाव और दूसरी मदोंपर सिर्फ ३२ रुपये माहवार खर्च करती है। जुलाई १९२५ और पिछली मईके बीच कुल जमा पूंजी २,०३६ रुपये थी। ८,३६५ रुपये की खादी खरीदी गई और ८,०८८ रुपयेकी खादी बेची गई।

इसमें सन्देह नहीं है कि मैसूर-जैसे शहरके लिए यह शुरुआत मामूली ही कही जायेगी; किन्तु यदि दूसरे शहर इसका अनुकरण करें और व्यवस्थापकगण योग्य और प्रामाणिक हों तो इसमें कोई सन्देह नहीं है कि मैसूरमें खद्दरका भविष्य बहुत उज्ज्वल है।

मान्यता कौन दे?

पूछा गया है कि गोशालाओंको मान्यता प्रदान करने की अखिल भारतीय गोरक्षा मण्डलकी शर्तें क्या हैं? अभीतक इसके लिए कोई नियम नहीं बनाये गये हैं; परन्तु मैं चौंड़े महाराजके इस सुझावको स्वीकार करता हूँ कि जो संस्था मान्यता चाहे वह अपनी आयका १) प्रति सैकड़ा मण्डलको दे। मान्यता पाने के लिए उसे पहले अपना सम्पूर्ण ब्यौरा देना, मण्डलका उद्देश्य स्वीकार करना और उससे सम्बन्धित गोशाला तथा हिसाब-किताबकी जाँच करने देना होगा। मान्य की गई संस्थाको मण्डलके विशेषज्ञोंकी सलाह प्राप्त करने, उसके पासके साहित्यका निःशुल्क उपयोग करने और जो मदद वह कर सकता है या जो सलाह वह दे सकता है उसे प्राप्त करनेका अधिकार होगा। स्पष्ट है कि ये नियम अ० भा० गोरक्षा मण्डलकी समितिकी मंजूरी पर ही निश्चित माने जायेंगे। अतएव समितिके सामने इनके पेश किये जानेके पहले अन्य सुझावोंका स्वागत किया जायेगा।

[ अंग्रेजीसे ]
यंग इंडिया, १-७-१९२६