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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

पुस्तकके प्रथम भागमें श्री ब्यूरोने जो तथ्य हमारे सामने रखे हैं उन्हें पढ़कर हृदय काँप उठता है। उससे मालूम होता है कि फ्रांसमें कैसी बड़ी-बड़ी संस्थाएँ केवल लोगोंकी लम्पटतामें सहायता पहुँचानेकी दृष्टिसे स्थापित हो गई हैं। कृत्रिम उपायोंके पक्षपातियोंका सबसे बड़ा दावा यह है कि इनमें लुक-छिपकर किये जानेवाले गर्भपात और भ्रूणहत्याकी घटनाएँ समाप्त हो जायेंगी। परन्तु तथ्योंके आगे उनका यह दावा भी गलत साबित हो जाता है। ब्यूरोका कहना है कि यद्यपि फ्रांसमें पिछले २५ वर्षोंसे गर्भ निरोधके उपाय लगातार काममें लाये जा रहे हैं परन्तु फिर भी गर्भपातके जुर्मोकी संख्या में कोई कमी नहीं हुई है। उसकी राय है कि गर्भपात पहलेसे बढ़ गये हैं। उसका अनुमान है कि प्रतिवर्ष लगभग २,७५,००० से ३,२५,००० तक गर्भपात कराये जाते हैं। लोग अब ऐसी बातें सुनकर उतने दुःखी नहीं होते जैसे पहले होते थे।

[ अंग्रेजीसे ]
यंग इंडिया, १-७-१९२६

९२. टिप्पणियाँ

बिहारमें खादी प्रदर्शनियाँ

बिहारमें हालमें हुई खादी प्रदर्शनियोंकी मेरे पास एक लम्बी-चौड़ी रिपोर्ट आई है। इस वर्ष दिल्लीमें अग्रवाल महासभाने एक ऐसी ही प्रदर्शनी की थी। उसको देखकर राजेन्द्रबाबूके दिलमें विचार उठा कि बिहारमें भी ऐसी खादी प्रदर्शनियाँ की जायें तो बड़ा लाभ हो। बिहारमें हुई प्रथम प्रदर्शनीका उद्घाटन कलकत्तेके खाद प्रतिष्ठानके बाबू सतीशचन्द्र दासगुप्तने किया। यह बहुत सफल रही और इस कारण बिहारके और स्थानों में भी ऐसी प्रदर्शनियाँ की गईं। पहली प्रदर्शनी गंगाके किनारे, बिहार विद्यापीठके मैदानमें, पटनासे करीब तीन मीलकी दूरीपर हुई। दूसरी बिहार नवयुवक मण्डलने की और उसका उद्घाटन किया सिन्ध प्रदेशके साधु वास्वानीने। तीसरी आरा और चौथी मुजफ्फरपुरमें हुई और मौलवी मुहम्मद शफीने उसका उद्घाटन किया। पाँचवीं छपरामें हुई। मौलाना मजहर-उल-हकने उसका उद्घाटन किया। छठी छपरा जिलेके मैरनिया नामक एक छोटे-से गाँव में और रिपोर्टमें उल्लिखित अन्तिम व सातवीं प्रदर्शनी ११ तारीखको गयामें हुई। गरमी बहुत पड़ रही थी परन्तु फिर भी गयामें सबसे ज्यादा लोग आये। लगभग ७,००० व्यक्ति आये और स्त्रियाँ भी उनमें बहुत-सी थीं। प्रदर्शनियों में कमसे-कम उपस्थिति २,००० रही।

विवरणमें कहा गया है कि 'इन प्रदर्शनियोंमें कांग्रेसी, गैर-कांग्रेसी, सरकारी कर्मचारी, जमींदार, वकील, छोटे-बड़े सौदागर सभी लोग आते हैं; और कहीं-कहीं तो यूरोपीय भी आ जाते हैं। मैरनियामें मध्यम वर्गके लोगोंके बजाय ज्यादातर सीधे-सादे ग्रामवासी ही आये।' हर प्रदर्शनीमें खादीकी औसत विक्री करीब १,००० की