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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

बजानेकी स्वतन्त्रता दे देता। मैं हिन्दू और मुसलमान, दोनोंके प्रतिनिधियोंको बुलवाता, उनकी जेवोंकी तलाशी लेकर, उनके पास जो-कुछ खानेकी वस्तु और घातक हथियार होते उन्हें उनसे छीनकर उनको एक घरमें बन्द कर देता और उसके दरवाजे उस समयतक नहीं खोलता जबतक वे आपसके झगड़ोंको तय नहीं कर लेते। इनके अतिरिक्त बहुतेरी और बातें हैं जिनको मैं यदि भारतका सम्राट् होता तो करता। पर मेरे सम्राट् होनेको सम्भावना बिलकुल नहीं है। यों मैंने जो ऊपर कहा है वह उन कार्यों की एक खासी झलक पेश कर देता है जो देशकी गरीबसे-गरीब जनताकी आवश्यकताओंको जानने-समझनेवाला एक व्यक्ति, जिसे लोग महज काल्पनिक समझनेकी भूल करते हैं और जो अपने आपको व्यावहारिक व्यक्ति मानता है, शक्ति मिलनेपर करता।

[ अंग्रेजीसे ]
यंग इंडिया, १-७-१९२६

९१. अनीतिकी राहपर— १

कृत्रिम उपायोंसे सन्तानवृद्धि रोकनेके सम्बन्धमें जो लेख देशी समाचार पत्रोंमें निकलते हैं कृपालु मित्र मेरे पास उनकी कतरनें भेजते रहते हैं। नौजवानोंसे चरित्र सम्बन्धी मेरा पत्रव्यवहार भी बढ़ता जा रहा है। पत्रव्यवहारमें उत्पन्न सारी समस्याएँ तो मैं इन पृष्ठोंमें हल नहीं कर सकता; यहाँ तो कुछ ही की चर्चा की जा सकती है। कुछ अमेरिकी सज्जन मेरे पास सम्बन्धित साहित्य भेजते रहते हैं और कुछ तो मुझसे कृत्रिम उपायोंका विरोध करनेके कारण नाराज भी हैं। उन्हें दुःख है कि कई बातोंमें प्रगतिशील सुधारक होते हुए भी सन्तति-नियमनके सम्बन्धमें मेरा विचार मध्ययुगीन है! इसके सिवाय देखता हूँ कि सभी देशोंके कुछ बड़े-बड़े विचारवान लोग भी कृत्रिम उपायोंके समर्थकोंमें से हैं।

यह सब देखकर मैंने सोचा कि कृत्रिम उपायोंके पक्षमें अवश्य ही कुछ-न-कुछ विशेष बात होगी और इसलिए मुझे इसपर अधिक विचार करना चाहिए। मैं इस समस्यापर विचार कर ही रहा था और तत्सम्बन्धी साहित्य पढ़नेके लिए सोच ही में था कि मुझे एक अंग्रेजी पुस्तक 'टुवर्ड्स मॉरल बैंकरप्सी' पढ़नेको मिली। इस पुस्तकमें इसी प्रश्नपर विचार किया गया है, और मेरी समझमें बहुत सुचारू रूपसे भी। मूल पुस्तक फ्रेंच भाषामें है और उसके लेखक हैं पॉल ब्यूरो। फ्रेंचमें किताबका नाम है 'ल[१] इनडिसिप्लिन देस मॉरस' और इसका अर्थ हुआ 'नीतिके क्षेत्रमें अनुशासनहीनता' पुस्तकका अनुवाद कॉस्टेबिल कम्पनी द्वारा प्रकाशित है और उसकी भूमिका डॉ० शारलिब, सी० बी० ई०, एम० डी० एम० एस० (लन्दन) ने लिखी है। पुस्तकमें ५३८ पृष्ठ और १५ अध्याय हैं।

पुस्तक पढ़कर मैंने यह सोचा कि लेखकके विचारोंपर अपनी सम्मति देनेसे पहले उचित है कि में इन उपायोंकी पुष्टि करनेवाले सभी मुख्य-मुख्य ग्रन्थोंको पढ़

  1. १. साधन-सूत्रमें द' है।