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रंगभेद बनाम स्वदेशी

है। इसका बहुत ही सीधा, काफी सन्तोषजनक और नैतिक कारण यह है कि चरखेके नाशसे भारतके करोड़ों किसानोंका एकमात्र अनुपूरक धन्धा विनष्ट हो गया है और उसका स्थान कोई दूसरा धन्धा नहीं ले सका है। इसलिए खद्दर और चरखेकी पुन: प्रतिष्ठाके रूप में स्वदेशी भारतके करोड़ों गरीबोंके अस्तित्वके लिए अत्यन्त आवश्यक है। पर रंगभेद कानून उन चन्द यूरोपवासियोंकी लोभपूर्तिका साधनमात्र है जो एक ऐसे देशका धन चूस रहे हैं जो उनका अपना नहीं है, जो दक्षिण आफ्रिकाके आदिवासियोंका है। अतः जहाँतक मैं समझ सकता हूँ रंगभेद कानूनका कोई भी नैतिक आधार नहीं है। दक्षिण आफ्रिकासे नवागत एशियावासियोंको निकाल देना अथवा उनको खत्म कर देना किसी भी हालतमें आवश्यक नहीं है; न यह प्रमाणित किया जा सकता है कि ऐसा करना दक्षिण आफ्रिकाके यूरोपवासियोंके ही अस्तित्वके लिए जरूरी है। फिर दक्षिण आफ्रिकाके आदिवासियोंको पददलित करनेके पक्षमें तो कोई नैतिक तर्क जुटाया ही नहीं जा सकता। इसलिए श्री स्पेंडर-जैसे अनुभवी विद्वानका इस प्रकार खद्दर रूपी अत्यन्त ही नैतिकतापूर्ण स्वदेशी तत्त्वको और रंगभेद विधेयकको एक ही श्रेणीमें रखना आश्चर्यजनक और दुःखद है। ये दोनों समानशील नहीं हैं। आध्यात्मिक समानताकी तो बात ही नहीं उठती; ये दोनों एक-दूसरेसे बिलकुल भिन्न हैं; एक-दूसरेसे इतने दूर, जितने एक-दूसरेसे उत्तरी और दक्षिणी ध्रुव हैं।

श्री स्पेंडरने अनुमान लगाया है कि यदि मैं भारतका निरंकुश शासक होता तो क्या करता। मैं इसका अनुमान शायद कुछ अधिक अधिकारपूर्वक कर सकता हूँ। यदि मैं भारतका सम्राट् होता तो मैं पृथ्वीके सभी मनुष्योंके साथ धर्म, वर्ण और जातिका कोई भेद किये बिना मैत्री करता; क्योंकि मेरा दावा है कि समस्त मानव जाति एक ही ईश्वरकी सन्तान है, जिसके छोटेसे-छोटे व्यक्तिको भी आत्म-साक्षात्कार या आत्मोत्कर्षका उतना ही अधिकार है जितना कि बड़ेसे-बड़े व्यक्तिको। भारतपर कब्जा रखनेके लिए जो सेना रखी गई है, उसे मैं प्रायः बिलकुल हटा देता; केवल इतनी पुलिस रखता जितनी यहाँके नागरिकोंकी चोरों और डाकुओंसे रक्षा करनेके लिए आवश्यक है। मैं सीमा प्रान्तके कबीलोंको घूस नहीं देता, जैसे आज दी जा रही है। मैं उनके साथ मैत्री करता और इस उद्देश्यसे उनके पास सुधारकोंको भेजता जो उनको अच्छे धन्धे सिखलाने के साधन खोज निकालते। भारतमें रहनेवाले प्रत्येक यूरोपवासी और उनके प्रामाणिक उद्यमों की रक्षाका मैं पूरा प्रबन्ध करता। सभी विदेशी कपड़े की आमदपर में इतना कर लगा देता कि वह भारतके अन्दर न आ सके और खद्दरको सरकारी नियन्त्रणमें लाकर ऐसी व्यवस्था करता कि सूत कातने के इच्छुक प्रत्येक ग्रामवासीको यह विश्वास हो जाता कि उसके चरखेसे निकला माल खप जायेगा। मैं मादक द्रव्योंकी आमद एकदम रोक देता और शराब खींचनेकी हर भट्टीको बन्द कर देता। केवल उतनी ही शराब और अफीम तैयार होने देता जितनी कि दवाके लिए आवश्यक मालूम होती। हर प्रकारकी धार्मिक पूजाकी— जो मनुष्य मात्रके नैतिक संस्कारके विरुद्ध नहीं है, पूरी रक्षाकी गारंटी देता। जिनको हम अछूत समझते हैं उनको प्रत्येक सार्वजनिक मन्दिरमें, पाठशालामें, जहां दूसरे हिन्दू जा सकते हैं,