८२. पत्र : बासन्तीदेवी दासको
आश्रम
साबरमती
२९ जून, १९२६
आशा है आपको भोम्बलके बारेमें तार[१] मिल गया होगा। समझमें नहीं आता कि आपको क्या कहूँ या कैसे सान्त्वना दूं। मैं जब भी बेचारी सुजाताके और आपके बारे में सोचता हूँ, मेरे सामने दुःखका पूरा चित्र खिंच जाता है। आशा यही है कि आपके अन्तरका सहज हस आपको सँभाले रहेगा, इतना ही नहीं बल्कि सुजाता और आपके आसपास मौजूद परिवारके अन्य सदस्योंके लिए भी शक्तिका स्रोत सिद्ध होगा। यदि लिख सकें तो मुझे एक-दो पंक्तियाँ अवश्य लिखें।
आपका,
श्रीमती बासन्तीदेवी दास
द्वारा सुधीर राय
२, बेलटोला रोड
कलकत्ता
अंग्रेजी प्रति (एस० एन० १९६४४) की फोटो-नकलसे।
८३. पत्र : नारणदास आनन्दजीको
आश्रम
२९ जून, १९२६
आचार्य गिडवानीने आज मुझे यह भयंकर बात बताई है कि आप जिन अंगूरोंको मुझे अत्यन्त स्नेहभावसे भेज रहे हैं उन अंगूरोंकी बेलोंमें खास तौरसे बकरेको काटकर अथवा कसाईखाने में जो पशु कटते हैं उनका रक्त सींचा जाता है। उन्होंने बताया कि उन्हें यह जानकारी भाई रणछोड़दाससे मिली है और भाई रणछोड़दास खुद बगीचेमें जाकर इन अंगूरोंको लाते हैं। मेरा मन इस बातको नहीं मानता। ऐसा लगता है, इस बारेमें कुछ गलतफहमी हुई है तथापि चूंकि अब यह शंका उठी है, अतः इसका समाधान भी होना ही चाहिए। मैंने आपको तार देनेका
- ↑ उपलब्ध नहीं है; देखिए "पत्र : उमिलादेवीको”, ३०-६-१९२६