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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

वह होनी भी चाहिए। बारिशके बिना पशु तो क्या, लोग भी मर रहे थे। अभी तो बारिश और बहुत होनी चाहिए।

राजेन्द्र बाबू इस समय जा रहे हैं। इस बारके 'नवजीवन' में उनका योगदान बहुत है। तुम तीनों खूब घूमते हो, यह बहुत अच्छी बात है। मैं तो यह चाहता हूँ कि तुम यहाँ खूब स्वस्थ होकर ही आओ। जबतक थोड़ेसे भी खद्दरपोश, निष्काम भावसे सेवारत रहेंगे तबतक खादीको निश्चय ही मान मिलेगा। मैंने हार्डीकी पुस्तक कोई नहीं पढ़ी। वे एक अच्छे उपन्यासकार थे, अथवा हैं, उनके बारेमें मैं केवल इतना ही जानता हूँ। उस जर्मन बहनसे अभी अच्छी जान-पहचान नहीं कर पाया हूँ, क्योंकि मैं बहुत कार्यव्यस्त रहता हूँ। आज मिलनेकी बात सोची थी; परन्तु मिल नहीं सका।

गुजराती प्रति (एस० एन० १९६४६) की फोटो-नकलसे।

८१. पत्र : राय प्रभुदास भीखाभाईको

आश्रम
२७ जून, १९२६

भाईश्री प्रभुदास,

आपका पत्र मिला। आप जो कुछ लिखना चाहें निश्शंक होकर लिखें। मैं उसका यथामति यथाशक्ति उत्तर दूंगा। 'गीता' में योगाभ्यासके बारेमें जो लिखा है वह प्रास्ताविक है, ऐसा मैं मानता हूँ। क्रियाएँ सिखाना उसका उद्देश्य नहीं है। क्रियाएँ योग्य योगाभ्यासियोंसे सीखनी चाहिए। मैं स्वयं इन क्रियाओंको क्रमसे नहीं जानता। मेरे जिन मित्रोंने प्राणायामका अभ्यास किया है, मैंने आपको उन्हींके प्रमाण दिये। यदि केवल प्राणायामसे ही ब्रह्मचर्य साधा जा सके तो महान समस्या का समाधान हो जाये; लेकिन इसके साथ ही ब्रह्मचर्यकी कीमत भी कम हो जायेगी। प्राणायाम आदि क्रियाओंसे साधक के लिए ब्रह्मचर्य साधना आसान हो सकता है, ऐसा मैं अवश्य मानता हूँ और जिन्हें ऐसा अनुभव हो उनके पास मैं अपने साथी ब्रह्मचारियोंमें से किसीको भेजनेके लिए तैयार हूँ। आप मेरे कहनेका कहीं ऐसा अर्थ तो नहीं करेंगे कि मैं आपसे आपका अभ्यास छुड़वाना चाहता हूँ। मेरी इच्छा तो यह है कि आपको अपने अभ्यासमें पूर्ण सफलता मिले।

मोहनदासके वन्देमातरम्

श्रीयुत राय प्रभुदास भीखाभाई

कठाना लोट
कठलाल डा०

बरास्ता नडियाद

गुजराती पत्र (एस० एन० १९९२२) की माइक्रोफिल्मसे।