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७९. पत्र : लक्ष्मीदास पु० आसरको

आश्रम
साबरमती
ज्येष्ठ बदी २, १९८२, २७ जून, १९२६

चि० लक्ष्मीदास,

तुम्हारे पत्र मुझे नियमपूर्वक मिलते रहते हैं। बेला बहन अब ठीक है, लेकिन देखता हूँ कि उसकी खूब सार-सँभाल रखनी होगी। आनन्दी दौड़ने लगी है। मणिने अपनी नाककी बाली मुझे सौंप दी है और अपनी सोनेकी कंठी भी मुझसे ही तुड़वाई है। चरखा संघने यह प्रस्ताव स्वीकार किया है कि व्यवस्था और वितरणका खर्च पूरा करनेके लिए चरखा संघ द्वारा तैयार कराई गई खादीके दाम ६४¼ प्रतिशतसे लेकर १२½ प्रतिशत तक बढ़ाये जा सकते हैं; लेकिन उसने यह निश्चय भी किया है कि इस प्रस्तावको अमलमें लानेसे पूर्व एजेन्टोंकी सलाह भी ले ली जानी चाहिए। यह अच्छा किया कि तुमने पैदल चलनेका अपना नियम बना लिया। यहाँ आनेमें तनिक भी उतावली न करना। मुझे सूतमें ८३ अंककी मजबूतीसे सन्तोष हो जाये, सो बात नहीं है। मेरी इच्छा तो १०० प्रतिशत मजबूती लानेकी है; लेकिन कसर कहाँ रह जाती है, मैं अभीतक यह नहीं समझ सका हूँ। यदि सूतकी मजबूती १०० प्रतिशत हो तो सूतकी समानता भी १०० प्रतिशत होनी चाहिए, क्योंकि मैं देखता हूँ कि मेरे सूतकी मजबूती में वृद्धि होने के साथ-साथ उसकी समानतामें अपने आप वृद्धि होती है।

बापूके आशीर्वाद

गुजराती पत्र (एस० एन० १९६४५) की फोटो-नकलसे।

८०. पत्र : देवदास गांधीको

आश्रम
साबरमती
ज्येष्ठ बदी २, १९८२, २७ जून, १९२६

चि० देवदास,

तुम्हारा पत्र मिला। मोतीलालजीके साथ तुम्हें क्या काम करना पड़ा, यह तुमने नहीं लिखा। काम चाहे जो हो, लेकिन तुम्हें उनकी सेवा करनेका अवसर मिला, यह बात मुझे बहुत अच्छी लगती है। यहाँ फिलहाल आना ठीक नहीं है, यह तो मैं भी कह सकता हूँ। यहाँ बहुत ज्यादा गरमी पड़ रही है। हाँ, कल बारिश हो गई है, इसलिए अव मौसम कुछ ठण्डा हो जायेगा। आज धूप बहुत तेज है और