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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

आशय स्पष्ट हो गया होगा। आप मुझ-जैसे नाचीज व्यक्तिके काम में इतनी रुची ले रहे हैं यह देखकर मन बड़ा प्रसन्न हुआ। मैं इसके लिए आपका बहुत कृतज्ञ हूँ। चरखा हमारे देशमें गरीबसे-गरीब लोगोंके सामने एक व्यावहारिक हल पेश करता है और यदि हम इस कार्यसे अपना तादात्म्य स्थापित कर सक तो उससे हमारे जीवनमें चुपचाप ही कितनी बड़ी क्रान्ति हो जाये।

हृदयसे आपका,

श्री डी० एन० बहादुरजी
बम्बई

अंग्रेजी प्रति (एस० एन० १९६४३) की फोटो-नकलसे।

७८. पत्र : भगवानजी मेहताको

आश्रम
ज्येष्ठ बदी २, १९८२ [२७ जून, १९२६]

भाईश्री ५ भगवानजी,

आपका पत्र मिला। आपने यह क्यों मान लिया कि मुझे आपके खिलाफ भर दिया गया है। यदि आपकी दलील मेरे गले नहीं उतरती तो उसका मतलब यह तो नहीं है कि मेरे मनमें आपके प्रति कोई पूर्वग्रह है? विवाहित होनेके कारण ही मैं विषयोंसे विरत हो सका हूँ, ऐसा मैंने अनुभव नहीं किया। तब फिर मैं यह स्वीकार कैसे करूँ? मेरी मित्र मण्डलीमें अनेक स्त्री-पुरुष ऐसे हैं जो आजन्म ब्रह्मचारी हैं। तब मैं सन्देह क्यों करूँ?

ईश्वरके सम्बन्धमें फुर्सत मिलनेपर कभी 'नवजीवन' में लिखूंगा। कारण यह है कि आपने जो प्रश्न पूछा है वह प्राय: पूछा जाता है। उसके सम्बन्धमें में जो उत्तर दूंगा उसमें कोई नवीनता नहीं होगी; लेकिन आपके प्रति सम्मान भावके कारण मैं प्रयत्न करूँगा। आपकी प्रामाणिकताके बारेमें मैंने कभी सन्देह नहीं किया है।

मोहनदासके वन्देमातरम्

श्री भगवानजी अनूपचन्द मेहता

सदर

राजकोट

गुजराती पत्र (एस० एन० १९९२४) की फोटो-नकलसे।