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पत्र : डी० एन० बहादुरजीको

चाहिए। वहाँ कई कक्षाएँ चलती हैं। नरहरि शास्त्री कालबादेवी रोडपर संस्कृत की एक निःशुल्क कक्षा चलाते हैं और हिन्दी आप बड़ी आसानीसे किसीके पास जाकर सीख सकते हैं।

यदि आप माडगांवकी अछूत बस्तीमें जाकर देखें तो फिर आपको अछूतों और सवर्णों में भेद करने में कोई कठिनाई नहीं पड़ेगी। माटुंगामे अछूतोंकी एक पाठशाला चलती है। आप चाहें तो उस पाठशालामें अपना कुछ समय दे सकते हैं। यदि आप व्यक्तिगत रूपसे उनकी कोई सेवा न कर सकें और आपके पास कुछ पैसे बचते हों तो आप उनको अलग रख लें और कथित अछूतोंकी सेवा करनेवाले कार्यकर्ताओं को दे दें।

हृदयसे आपका,

अंग्रेजी प्रति (एस० एन० १९६४२) की माइक्रोफिल्मसे।

७७. पत्र : डी० एन० बहादुरजीको

आश्रम
साबरमती
२७ जून, १९२६

प्रिय मित्र,

आपका पत्र मिला। ५० अंककी मजबूतीका मतलब है जितनी होनी चाहिए उससे आधी। मजबूतीका अर्थ है सूतका बल। ठीक तरहसे बल दिया हुआ सूत बिना टूटे एक निश्चित भार उठा सकता है और इस मानकका सूत सो अंक मजबूतीका सूत कहलाता है। और अगर सूत मानक भारसे आधा ही भार उठा सके, तो उसे पचास अंक मजबूतीका सूत कहते हैं। लेकिन पचास अंककी मजबूतीका सूत बुनकरके लिए उतना अच्छा नहीं रहता। मिलका सूत भी कदाचित ही सौ अंककी मजबूतीका होता है। सत्तर अंककी मजबूतीका सूत सामान्यतः अच्छा रहता है। उससे बुनकरको बुनाई करने में किसी कठिनाईका सामना नहीं करना पड़ता। सूतकी एकसारीके लिए पचास मानक अंक रखा गया है। अच्छी तरह बल दिया हुआ सूत इकसार न हो तो राछमें से निकलते समय टूट जाता है। राछमें से सैकड़ों तार निकलते हैं, और वह कपड़ेके अर्जके बराबर चौड़ा होता है। सूत अगर इकसार न हो तो बार-बार टूटता रहता है। इसलिए सूत जितना इकसार होगा, बुनाईमें उतना ही अच्छा रहेगा। इसीलिए सूतकी इकसारीका अंक कमसे कम पैंतालीस होना चाहिए। कताई समाप्त करने के बाद लच्छीको लगातार देखनेसे सूतकी इकसारी और धागेको तोड़कर मोटे तौरपर उसके बल का अन्दाज लगाया जा सकता है। समय-समयपर अपने सूतकी जाँच करवाते रहने से आप उन आवश्यक सुधारोंको करने योग्य बन सकते हैं जो सावधानी से प्रगति करते चले जानेपर होते हैं। आशा है कि अब मेरा