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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

सात रुपये मिलती है। इसलिए शुद्ध नफा ११ रुपयेका हुआ। यह तो उनके लिहाजसे बहुत भारी कमाई है। फिलहाल सभी परिवार अपनी जरूरतकी १४ सेर रुई रखकर उसे कात लेते हों, सो बात नहीं है। लेकिन यह कहा जा सकता है कि इस दिशामें काम शुरू हो गया है।

ग्राम-व्यवस्था

हमने ऊपर देखा कि चरखेके द्वारा चोधरा-जैसे गरीब लोगोंमें धीरे-धीरे परन्तु क्रमश: परिवर्तन हो रहा है। यदि कार्यकर्ता मद्यनिषेधके बारेमें भाषण भर देते और चरखेके सहारे गांवके लोगोंके सम्पर्कमे न आते और लोगोंको अपना तमाम समय लाभदायक काममें लगानेका रास्ता न सुझाते तो उनकी बातका असर भी क्या होता? कार्यकर्ताओंने लोगोंको मद्य पीनेसे रोका और उनके हाथमें चरखा दिया। इन लोगोंके बच्चोंके लिए स्कूलोंकी स्थापना की। इन स्कूलोंमें वर्तमान चालू ढंगकी बाबू बनानेवाली शिक्षा नहीं दी जाती, अपितु ऐसी शिक्षा दी जाती है जिससे वे अच्छे तरीकेसे खेती कर सकें, सूत कात सकें, कपड़ा बुन सकें और समाजके अच्छे सदस्य बन सकें। यह प्रयोग अभी नया है, लेकिन “पूतके पांव पालने में ही दिखाई दे जाते हैं।" जो काम शुरू हुआ है उससे भविष्यमें भी अच्छा काम होनेकी आशा की जा सकती है, क्योंकि कताईके साथ-साथ उससे सम्बन्धित अन्य धन्धोंका भी जीर्णोद्धार हो रहा है।

हम उम्मीद करते हैं कि इस प्रवृत्तिके परिणामस्वरूप ये लोग जिसे अध्यापक मलकानी "देशी सरकार" कहते हैं, उसके पंजोंसे मुक्त हो जायेंगे। और वह भी उन्हें बलपूर्वक हटाकर नहीं, अपितु उनका हृदय परिवर्तन करके और उन्हें जाग्रत करके, क्योंकि उद्यमी बनकर लोग साहूकारसे व्याजपर पैसा और मद्य विक्रेतासे मद्य लेना बन्द कर देंगे और इस तरह दोनोंसे पीछा छुड़ा लेंगे।

भूल सुधार

महुधा खादी कार्यालयके बारेमे १३ जूनके 'नवजीवन' में जो टिप्पणी दी गई है, उसके सम्बन्धमे एक भाई लिखते हैं।[१]

यदि इस तरह ध्यानसे पढ़नेवाले पाठक और ग्राहक ज्यादा हों तो 'नवजीवन' थोड़े ही समयमे दोषरहित पत्र वन जाये। मेरी खुदकी यह इच्छा है कि उसमें तथ्य-दोष, एक भी अनुचित शब्द और भाषा-दोष न हो। लेकिन मैं जानता हूँ उसमें भाषा-दोष रह ही जाता है और अनेक बार तथ्य-दोष भी अनजाने ही आ जाता है। केवल इतना ही दावा किया जा सकता है कि कलमपर काबू रहता है। तथ्य-दोषके निराकरणके लिए पाठकोंकी मदद चाहिए। भाषा-दोषको दूर करनेके लिए छापेखानेमें अधिक कुशल व्यक्ति होने चाहिए और 'नवजीवन' की सामग्री लिखनेवाले लोग भाषा-शास्त्री होने चाहिए। ये साधन मेरे पास जितने चाहिए उतने नहीं है, तथापि 'नवजीवन' को चालू रखनेका लोभ तो है ही। फिलहाल तो जिन्हें 'नवजीवन प्रिय है, ऐसे पाठकोंको 'नवजीवन' के दोषोंको दरगुजर करना ही होगा।

  1. यहाँ नहीं दिया गया है। टिप्पणीके लिए देखिए खण्ड ३०, ५४ ६१७-१८ ।