२१ मार्च: अहमदाबादके राष्ट्रीय संगीत मण्डलके द्वितीय वार्षिकोत्सवमें भाषण दिया।
२६ मार्च: कैथरीन मेयोको लिखे एक पत्रमें भारतकी गरीबीके कारण बताये और उसे दूर करनेके उपायके रूपमें चरखेके महत्त्वपर जोर दिया।
२७ मार्च: श्री आर॰ डी॰ टाटाको लिखे पत्रमें गांधीजीने श्री टाटाको याद दिलाया कि मेरी जमशेदपुरकी यात्राके दौरान आपने वायदा किया था कि मुझे एक लाखके भीतर जितने तकुओं और तकलियोंकी जरूरत होगी उतने आप मुझे खुशी-खुशी देंगे।
२८ मार्च: ' नवजीवन' में प्रकाशित 'कुछ धार्मिक प्रश्न 'के उत्तर दिये।
१ अप्रैल: 'यंग इंडिया' में प्रकाशित "मेरा राजनीतिक कार्यक्रम" शीर्षक लेखमें अमेरिकी मित्रोंको उत्तर देते हुए एकता, अस्पृश्यता-निवारण और शराब तथा मादक द्रव्योंसे प्राप्त होनेवाले राजस्वके अनौचित्यके अलावा चरखेके कार्यक्रमपर जोर दिया। त्रिवेन्द्रमकी एक सभाको अस्पृश्यता-निवारणपर सन्देश भेजा।
४ अप्रैल: 'नवजीवन' में "ब्रह्मचर्य" "सत्याग्रह सप्ताह", "पहाड़ी जातियाँ" तथा "अखिल भारतीय देशबन्धु स्मारक" पर लेख लिखे।
८ अप्रैल: तुमकुरमें आयोजित वकीलोंके सम्मेलनको सन्देश भेजा। हेमेन्द्र बाबू द्वारा लिखित 'देशबन्धुकी जीवनी' नामक पुस्तकका आमुख लिखा। 'यंग इंडिया' में प्रकाशित "शंका-समाधान" शीर्षक लेखमें बाबू भगवानदासकी शंकाका समाधान करते हुए चरखेका पक्ष समझाया।
११ अप्रैल: श्रीमती सरोजिनी नायडूके अनुरोधपर जलियाँवाला बाग-दिवसपर सन्देश लिखा।
घनश्यामदास बिड़लाको लिखे पत्रमें कलकत्तामें हुए साम्प्रदायिक दंगोंके बारेमें लिखा।
१३ अप्रैल: के॰ टी॰ पॉलको एक पत्र लिखा जिसमें उन्होंने फिनलैंडमें होनेवाले यंगमैन्स क्रिश्चियन एसोसिएशनके विश्व-सम्मेलनमें भाग लेनेके सिलसिलेमें अपने पहनावे तथा भोजन सम्बन्धी शर्तोंका उल्लेख किया और भाषण देनेके बजाय उन्होंने खुले हृदयसे छात्रोंके साथ बातचीत करनेको प्रमुखता दी।
१५ अप्रैल: 'टाइम्स ऑफ इंडिया' ने पण्डित नेहरूके प्रति "न केवल अपमानजनक अपितु अत्यन्त भ्रामक भाषा" का प्रयोग किया था; उसका उत्तर देते हुए 'यंग इंडिया' में "पण्डित नेहरू और खद्दर" शीर्षक लेख लिखा।
'यंग इंडिया' में "तकली शिक्षक" पुस्तककी लम्बी समीक्षा लिखी।
१८ अप्रैल: मसूरी-यात्रा स्थगित करनेके सम्बन्धमें वक्तव्य जारी किया।
२० अप्रैल: सतीशचन्द्र दासगुप्त तथा काका कालेलकरको लिखे पत्रोंमें बताया कि कैसे और क्यों मसूरी-यात्रा स्थगित की।
२१ अप्रैल: सरकारके साथ अनुक्रियामूलक सहयोगकी परस्पर स्वीकृत शर्तें तय करनेके लिए श्री मोतीलाल नेहरू द्वारा आयोजित परिषद्में, मोतीलालजी, जयकर, कालेलकर, अणे, मुंजे, लाला लाजपतराय, सरोजिनी नायडू और अन्य लोगोंसे विचार-विमर्श किया।