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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय



५. मोतीलालजीका वैकल्पिक फार्मूला

प्रतिसहयोगवादी नेताओंको ४ तारीखकी सुबह दिये गये वैकल्पिक फार्मूलेका पाठ निम्न प्रकार था:

इस बातको ध्यानमें रखते हुए कि श्रीमती सरोजिनी नायडू, सर्वश्री लाजपतराय, मा॰ श्री॰ अणे, एम॰ आर॰ जयकर, एन॰ सी॰ केलकर, जी॰ ए॰ ओगले और पण्डित मोतीलाल नेहरूके बीच २१ अप्रैल, १९२६ को साबरमतीमें हुए समझौतेकी सच्ची व्याख्याके सम्बन्धमें मतभेद और शंकाएँ उठ खड़ी हुई हैं, अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटीकी यह बैठक जहाँ कानपुर कांग्रेसके संकल्प ७ तथा दिल्लीमें अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटीकी ६ और ७ मार्च, १९२६को हुई बैठकोंमें स्वीकृत संकल्प २ (ख) में निर्धारित सिद्धान्तों, नीति तथा कार्यक्रमसे पूरी सहमति प्रकट करती है, वहाँ इसका यह विचार भी है कि सभी शंकाओं और मतभेदोंको दूर करने तथा देशके सामने असली सवालको रखनेके खयालसे यह बात साफ-साफ बता देना अच्छा होगा कि उक्त संकल्पमें जिस सन्तोषजनक प्रतिक्रियाका उल्लेख है, उसका क्या मतलब है।

इसलिए यह निश्चय किया जाता है कि:

(१) ८ फरवरी, १९२५ को केन्द्रीय विधान सभा द्वारा पास किये गये प्रस्तावमें निहित सिद्धान्तका सरकार द्वारा स्वीकार कर लिया जाना पूर्ण उत्तरदायी शासनकी राष्ट्रीय माँगके प्रति उसकी सन्तोषजनक प्रतिक्रिया माना जायेगा और विधान सभा द्वारा ८ सितम्बर, १९२५ को पास किये गये प्रस्तावमें जो कदम सुझाये गये हैं, यदि सरकार वैसे कदम तत्काल उठाये तो उसकी इस कार्रवाईको फिलहाल उक्त सिद्धान्तके अनुसार आचरण करनेका पर्याप्त प्रमाण माना जायेगा।

(२) यदि सरकार विधान सभा द्वारा ८ सितम्बर, १९२५ को स्वीकृत प्रस्तावमें उल्लिखित कदमोंसे भिन्न अन्य कोई कदम उठाकर हमें इस बातके लिए आश्वस्त कर दे कि सच्चे अर्थोंमें उत्तरदायी शासन निकट भविष्यमें स्वयं आ जायेगा और अगर इस बीच प्रान्तोंमें सारतः पूर्ण उत्तरदायी शासन स्थापित कर दिया जाये तो सरकार द्वारा दिखाई गई ऐसी प्रतिक्रियाको मन्त्री-पद स्वीकार करने और प्रान्तीय बजटोंपर उनके गुण-दोषके आधारपर विचार करनेको राजी होनेकी दृष्टिसे पर्याप्त सन्तोषजनक माना जायेगा, लेकिन शर्त यह है कि ऐसी किसी भी प्रतिक्रियाको पर्याप्त नहीं माना जायेगा जिसमें निम्नलिखित बातें शामिल न हों:

(क) जिन राजनीतिक कैदियोंको वैध रूपसे गठित अदालत द्वारा अपराधी करार दिये बिना अभी जेलोंमें रखा जा रहा है उनकी रिहाई या कानूनके मुताबिक उनपर मुकदमा चलाया जाना।

(ख) सभी दमनकारी कानूनोंका रद्द किया जाना।

(ग) जिन लोगोंने दी हुई सजाएँ भोग ली हैं, उनपर देशकी निर्वाचित संस्थाओंकी सदस्यताके उम्मीदवार होनेके सम्बन्धमें लगाई गई सारी निर्योग्यताओंकी समाप्ति।