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परिशिष्ट

(ख) जबतक सरकार ऐसी प्रतिक्रिया नहीं दिखाती तबतक सरकार द्वारा दी हुई कोई भी सामग्री स्वीकार नहीं करेंगे और यदि उन्हें बजटोंकी प्रतियाँ दी जायेंगी तो उन्हें नामंजूर कर देंगे, बशर्ते कि कार्य-समिति कोई अन्यथा निर्देश न दे।

३. प्रतिसहयोगियोंका अकोलासे जारी किया गया घोषणा-पत्र

गत फरवरी मासमें अकोलामें हुए सम्मेलनमें प्रतिसहयोगवादी दल द्वारा अपने कौंसिल कार्यक्रमके सम्बन्धमें जारी किये गये घोषणापत्रमें कहा गया है:

हम मानते हैं कि जबतक विधान परिषदोंकी कार्रवाईमें समान रूपसे और समान उत्साहसे निरन्तर बाधा डालते रहनेकी नीतिको बड़े पैमानेपर नहीं आजमाया जाता और जबतक उस नीतिके पीछे किसी ठोस शक्तिका समर्थन सुलभ नहीं होता तबतक उसका सहारा लेनेसे संवैधानिक गतिरोध नहीं पैदा हो सकता।

हम समझते हैं कि मौजूदा परिस्थितियोंमें सबसे अच्छा रास्ता प्रतिसहयोगका ही है। वह रास्ता यह है कि जो सुधार दिये गये हैं वे यद्यपि असन्तोषजनक, निराशाजनक और अपर्याप्त हैं फिर भी उनसे जितना-कुछ सिद्ध हो सकता है, उसको दृष्टिमें रखकर हम उनके अनुसार काम करनेकी कोशिश करें; और इन सुधारोंका उपयोग हम पूर्ण उत्तरदायी शासन प्राप्त करने और उस शासनके प्राप्त होनेतक लोगोंको ऐसी सुविधाएँ सुलभ करानेके लिए करें जिनसे वे अपने हितोंको सुदृढ़ कर सकें और अन्याय तथा कुशासनका मुकाबला करनेके लिए अपने अन्दर शक्ति और प्रतिरोधकी क्षमताका विकास कर सकें।

इन सुधारोंको कार्यान्वित करनेकी नीतिके अन्तर्गत अनिवार्यतः यह बात भी आ जाती है कि हम सत्ता, दायित्व और पहलकी क्षमता प्रदान करनेवाले उन तमाम स्थानोंपर कब्जा कर लें जिनपर विधान मण्डलीय दल चुनाव द्वारा कब्जा कर सकता है या जिन स्थानोंपर काम करनेवाले लोग अन्य प्रकारसे विधान मण्डलीय दलके प्रति उत्तरदायी हो सकते हैं। लेकिन ऐसा करते हुए नीति कार्यक्रम तथा ऐसे ही अन्य मामलोंमें समय-समयपर जो शर्ते लगाना वांछनीय प्रतीत हो उनके बन्धनको मानना होगा।[१]

४. समझौता टूट गया

४ मईको अहमदाबादमें हुई अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटीकी बैठकमें पण्डित मोतीलाल नेहरूने यह घोषणा की कि साबरमती समझौतेकी शर्तोंकी व्याख्याके सम्बन्धमें उसपर हस्ताक्षर करनेवाले लोगोंके बीच तीव्र मतभेद होनेके कारण वह वार्ता, जो मैं पिछले कुछ दिनोंसे प्रतिसहयोगवादियोंके साथ चला रहा था, टूट गई है और यह समझौता भंग हो गया है एवं अब इसका कोई अस्तित्व नहीं रहा। प्रतिसहयोगवादि दलके मन्त्रीका एक पत्र भी वहाँ प्रस्तुत था, जिससे पण्डित मोतीलालके वक्तव्यकी तत्त्वतः पुष्टि होती थी।

  1. भाग १, २ और ३ अप्रैल १९२६ तथा भाग ४, ५ और ६ मई १९२६ के इंडियन रिव्यूसे लिये गये हैं।