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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

इस विद्यालयका काम आपको ऐसा ही सेवक बनाना है। अगर उसमें रस न मिले तो आपके लिए यह विद्यालय नीरस और त्याज्य है।

आप देखेंगे कि इस सत्रमें विद्यालयमें बहुत-से परिवर्तन कर दिये गये हैं। जिनके त्यागके परिणामस्वरूप यह विद्यालय स्थापित हो सका, जिन्होंने विद्यार्थियों की सच्ची प्रीति अर्जित की, उन आचार्य गिडवानीने मेरी सलाह और विनतीपर प्रेम महाविद्यालय वृन्दावनका आचार्य-पद स्वीकार कर लिया है। मैं जानता हूँ कि जब यह बात विद्यार्थियोंने सुनी तो वे बहुत दुःखी हुए थे। उनके ऐसे प्रेमके लिए मैं उन्हें धन्यवाद देता हूँ। लेकिन जो आश्वासन मैंने लोगोंको मुँहसे दिया था, वही आश्वासन यहाँ लिखकर देना चाहता हूँ। यह वियोग सहन करने योग्य है। हमारा धर्म तो अपने प्रियजनोंके गुणोंकी स्मृति हृदयमें बनाये रखकर उनका अनुकरण करना है। हमने हरएक कदम विद्यापीठके श्रेयका विचार करके ही उठाया है। सौभाग्यसे कुलनायकके रूपमें हमें भाई नरसिंहप्रसाद मिले हैं। विद्यार्थियोंके साथ उनका वर्षोंसे सम्बन्ध रहा है। आपके सम्पर्कमें वे बार-बार आते हैं। आप उन्हें अपना हृदय दीजिए। मेरा द्वार तो हर विद्यार्थीके लिए खुला हुआ है। आपके जीवनमें मैं जितना चाहता हूँ उतना लीन नहीं हो सकता, इसका दुःख मुझे सदा रहा है।

'अध्यापक आठवले, दलाल, मजमुदार और त्रिकमलाल शाह महाविद्यालय छोड़कर चले गये हैं। उनका जाना अनिवार्य था। उनकी विद्वत्ताका लाभ हमें नहीं मिलेगा, यह बेशक दुःखकी बात है। जो अध्यापक यहाँसे चले गये हैं, उनके बदले श्री कीकुभाई, झीणाभाई देसाई, नगीनदास, गोपालदास और गांधी आये हैं। वे सबके-सब इस विद्यापीठमें पढ़े हुए हैं, इस बातपर अगर हम कुछ अभिमान करें तो यह अनुचित न होगा। मेरी यही कामना है कि उनका उद्यम महाविद्यालयको शोभान्वित करे।

प्रभुसे मेरी प्रार्थना है कि वह विद्यार्थियोंका कल्याण करे, उन्हें दीर्घायु बनाये और शुद्ध सेवामें प्रवृत्त करे।

[गुजरातीसे]
नवजीवन, २० ६-१९२६