पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 30.pdf/६५८

यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।

 

६९०. पत्र: कासम अलीको

साबरमती आश्रम
रविवार, १३ जून, १९२६

भाईश्री ५ कासम अली,

आपका पत्र मिला। खुदा एक है और वह निराकार है——इसमें आपको क्या कठिन लगता है, यह मेरी समझमें नहीं आया। साकार वस्तु सर्वव्यापक नहीं हो सकती; जो सर्वव्यापक है उसे सूक्ष्मसे-सूक्ष्म ही होना चाहिए। इसलिए वह निराकार ही है। गुरुकी आवश्यकता तो सबको स्वीकार करनी चाहिए, लेकिन एकदम किसीको गुरु नहीं कहा जा सकता। इस जमानेमें तो गुरुकी शोध करना ही गुरुको माननेके समान है, क्योंकि सम्पूर्ण गुरुको प्राप्त करनेके लिए सम्पूर्ण योग्यता चाहिए। और यदि हम सब धर्मोको सच मानें तो किसीको अपना धर्म छोड़ने अथवा दूसरोंसे उनका धर्म छुड़वानेकी आवश्यकता नहीं रह जाती, क्योंकि सब कोई सारे धर्मोसे अपने सन्तोषकी वस्तुएँ ग्रहण कर सकते हैं। गुजराती प्रति (एस॰ एन॰ १०९३२) की माइक्रोफिल्मसे।

६९१. सन्देश: विद्यार्थियोंको[१]

[१४ जून, १९२६ या उससे पूर्व][२]

आचार्य कृपलानी, अध्यापक तथा विद्यार्थीगण और भाइयो तथा बहनो,

कहाँ १९२१ और कहाँ १९२६!

इसे आप निराशाका उद्गार न मानें! हमारा देश पीछे नहीं जा रहा है। हम पीछे नहीं जा रहे हैं। हम स्वराज्यकी दिशामें पाँच साल आगे बढ़े हैं। इस बातसे कोई इनकार नहीं कर सकता। कोई कह सकता है कि १९२१ में तो लग रहा था कि वह अब आया, अब आया; आज तो न जाने वह हमसे कितनी दूर चला गया है। ऐसे लोगोंकी इस निराशाको आप मिथ्या मानिए। शुभ प्रयत्न कभी बेकार नहीं जाते और मनुष्यकी सफलता तो उसके शुभ प्रयत्नमें ही है। परिणामोंका मालिक तो सिर्फ ईश्वर ही है। संख्याके बलपर तो कायर लोग कूदते हैं। आत्म बलवाला मनुष्य

  1. भाषणका अंग्रेजी अनुवाद देते हुए १७-६-१९२६ के यंग इंडियामें प्रस्तावनाके रूपमें यह टिप्पणी दी गई थी: गर्मी की छुट्टियोंके बाद गुजरात महाविद्यालय गत १४ जूनको गांधीजीके भाषणके साथ फिर खुल गया। १४ जूनको गांधीजीका मौन-दिवस पड़ता था, इसलिए उनका भाषण पढ़कर सुनाया गया।
  2. भाषणका अंग्रेजी अनुवाद देते हुए १७-६-१९२६ के यंग इंडियामें प्रस्तावनाके रूपमें यह टिप्पणी दी गई थी: गर्मी की छुट्टियोंके बाद गुजरात महाविद्यालय गत १४ जूनको गांधीजीके भाषणके साथ फिर खुल गया। १४ जूनको गांधीजीका मौन-दिवस पड़ता था, इसलिए उनका भाषण पढ़कर सुनाया गया।