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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

रखी जाती है। पिछले तीन मासमें ८४२ रुपयेकी कीमतकी बाहरकी खादी बेची गई। खादीकी कीमत लागत मूल्यसे २० प्रतिशत कम रखी जाती है। इस कार्यालयमें ६ कार्यकर्त्ता काम करते हैं।

इस कार्यालयको तथा इसके जैसे अन्य कार्यालयोंके लोगोंसे मैं बंगालका अनुकरण करनेका अनुरोध करता हूँ। बंगालमें सारी खादी स्थानीय खपतको ध्यानमें रखकर ही तैयार की जाती है। इसलिए वहाँ स्थानीय आवश्यकताओंको पूरा करनेका पूरा प्रयत्न किया जा रहा है और इसी कारण महीन तथा बड़ी चौड़ाईकी खादी प्रचुर मात्रामें तैयार की जा रही है तथा इस उत्पादनमें दिन-प्रतिदिन वृद्धि हो रही है। इस तरह स्थानिक आवश्यकताओंको ध्यानमें रखकर काम करनेसे हमें सब वर्गोके लोगोंके सम्पर्कमें आनेका अवसर मिलता है। उनकी सेवा होती है और खादीका अच्छा प्रचार होता है। इस ढंगसे खादीका प्रचार किया जाये तो अनेक समस्याएँ अपने-आप सुलझ जाती हैं और अन्ततः हमारी प्रगति धीरे-धीरे नहीं, किन्तु दिन-दूनी और रात चौगुनी होती है।

यदि सूतकी किस्मको महीन बनानेकी ओर जितना ध्यान दिया जाता है उतना ही मालकी मजबूती बढ़ानेपर दिया जाये तो सूतको कोई भी बुनकर बुन सकता है। और अनुभव यह बताता है कि यदि सूतकी किस्म सुधारनी हो तो कातनेवालेको पूनियाँ खुद बनानी चाहिए। ऐसा करनेसे कमाई बढ़ेगी, यह तो स्पष्ट ही है।

कार्यकर्त्ताओंको मेरी दूसरी सलाह यह है कि उन्हें रेलवेसे दूरके गाँवोंकी जाँच करनी चाहिए। वहाँके गरीबोंकी स्थिति देखनी चाहिए और वहाँ चरखेके प्रचारके लिए कैसा अवकाश है, इसकी खोज करनी चाहिए। मैं जानता हूँ कि आजके युगमें पले-पुसे हम लोगोंके लिए रेलवेसे दूर जाकर रहना बहुत कठिन है। वहाँ जानेका मतलब यह है कि वहाँसे फिर बार-बार आना-जाना नहीं हो सकता। तथापि सच्ची सेवाकी गुंजाइश तो वहीं है और अन्ततः वहाँ जानेसे ही हमारी समस्या हल होगी। देशके सात लाख गाँवोंमें रेलवे स्टेशन मात्र सात हजारसे कुछ अधिक हैं और यदि सरकार सात लाख गाँवोंमें कर उगाहनेके लिए जा सकती है तो देशके सेवक उनसे उगाहे जानेवाले इस करका प्रतिफल देनेके लिए क्यों वहाँ न जायें? यह नहीं भूलना चाहिए कि कर उगाहनेवाले अथवा प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूपसे उसका लाभ उठानेवाले हमारे मध्यमवर्गके लोग ही हैं।

[गुजरातीसे]
नवजीवन, १३-६-१९२६