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महुधा खादी कार्यालय

रहकर अपनी अन्तर-गुहाकी गहराईमें जाकर, उससे अनुभव प्राप्त करके कहता है: 'इस हिंसामय संसारमें मनुष्यका धर्म अहिंसा है और वह जितने अंशोंमें अहिंसक है उतने ही अंशोंमें अपनी जातिका गौरव बढ़ा सकता है।' मनुष्यका स्वभाव हिंसा नहीं बल्कि अहिंसा है, क्योंकि वही अपने अनुभवसे निश्चयपूर्वक यह कह सकता है, 'मैं देह नहीं हूँ, आत्मा हूँ, और इस देहका उपयोग आत्माके विकासके निमित्त——आत्म-दर्शनके निमित्त——करनेका मुझे अधिकार है।' और उसमेंसे वह देह-दमनकी, काम, क्रोध, मद, मोह, मत्सर आदि शत्रुओंको जीत लेनेकी नीतिकी रचना करता है, उन्हें जीतनेका भारी प्रयत्न करता है और उसमें वह पूर्ण सफलता प्राप्त करता है। जब वह ऐसी सफलता प्राप्त करता है तभी यह कहा जा सकता है कि उसने मानव जातिके अनुरूप कार्य किया है इसलिए राग-द्वेषादिको जीत लेना कोई अतिमानुषी कार्य नहीं, बल्कि मानुषी कार्य है। अहिंसाका पालन बड़े उच्च प्रकारकी वीरताका लक्षण है। अहिंसामें भीरुताके लिए कोई स्थान नहीं हो सकता।

[गुजरातीसे]
नवजीवन, १३-६-१९२६

६८५. महुधा खादी कार्यालय

भाई मोहनलाल पण्डयाने इस खादी कार्यालयका जो विवरण भेजा है, मैं उसमें से निम्न बातें यहाँ देता हूँ।

इस कारखानेकी मार्फत २६१ बहनें सूत कातती हैं। इनमें से २३६ मुसलमान हैं, बाकी ब्राह्मण, बनिया और बारोट जातियोंकी हैं। कातनेवाली बहनोंकी संख्या बढ़ती जाती है। इन बहनोंको अपने रहन-सहनके निर्वाहमें इस कामसे ठीक मदद मिलती है, उन्हें दूसरा काम ढूँढनेके लिए बाहर नहीं निकलना पड़ता। मुसलमान बहनें चरखेको बीवियोंका नूर कहती हैं।

इस प्रवृत्तिके सिलसिलेमें तीन पींजनेवालों और पाँच पूनियाँ बनानेवाली बहनोंको भी रखा गया है। आठ करघे चल रहे हैं।

सूतका उत्पादन प्रति मास २० मन है। पहले ६ अंकका सूत काता जाता था। अब १० से कम अंकका सूत काता ही नहीं जाता और इस कारण प्रति कच्चा सेर पाँच आनेसे कमकी मजूरी नहीं दी जाती। इस तरह एक मनके १२।। रुपये हुए और २० मनके २४६ रुपये। इस हिसाबसे प्रत्येक कत्तिनकी औसत कमाई एक रुपयेसे कम हुई। लेकिन भाई मोहनलाल लिखते हैं कि प्रति व्यक्ति औसत कमाई डेढ़ रुपया होगी। यदि ऐसा है तो या तो कत्तिनोंकी संख्या कम होगी अथवा सूतका अंक ऊँचा होगा।

इतने सूतसे हर महीने २७ इंच चौड़ाई और १८ गज लम्बाईके ६५ थान बुने जाते हैं। इनमें से डेढ़ गज लम्बे तौलिये और २२ इंचके चौरस छोटे गमछे बनाये जाते हैं। इस खादीकी बिक्री ज्यादातर बम्बईमें होती है। अगहनसे वैशाखतक स्थानीय रूपसे १२९४ रुपयेकी खादी बेची गई। अब कार्यालयमें बाहरकी खादी भी