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६८२. पत्र: सोमनाथ पुरुषोत्तमको

साबरमती आश्रम
शनिवार, १२ जून, १९२६

भाई सोमनाथ,

तुम्हारा पत्र मिला। मेरी दृष्टिसे तो सबके पालन योग्य महानियम तो सत्य और अहिंसा है। और जो अपने स्वादपर काबू नहीं रख सकता, वह इन दोमें से एक भी नियमका पालन नहीं कर सकता, ऐसी मेरी मान्यता है। और इन व्रतोंके पालनके लिए किसी योगाभ्यासकी जरूरत पड़ती होगी, ऐसा माना जा सकता है।

श्रीयुत सोमनाथ पुरुषोत्तम


भांगवाड़ी थियेटर


बम्बई—२

गुजराती प्रति (एस॰ एन॰ १९६१४) की माइक्रोफिल्मसे।

६८३. पत्र : जगजीवनदास नारणदास मेहताको

साबरमती आश्रम
शनिवार, १२ जून, १९२६

भाईश्री जगजीवनदास,

भाई शम्भूशंकर यहाँ आ गये हैं। उनके साथ सारी बात कर ली है। अभी तो उन्होंने ३०० रुपयेकी माँग की है। उसकी हुंडी इसके साथ है। उसमें से कुछ कर्ज छोटी राशिके हैं; ऐसा उन्होंने कहा है कि वे उन्हें चुका देंगे। आँकड़ोंमें मैं आपके १३०० रुपये देखता हूँ। ऐसा भाई शम्भूशंकरने कहा कि उसका आप ब्याज लेना चाहते हैं। मेरा तो खयाल है, ऐसे सार्वजनिक कार्योंके लिए दिये गये पैसेपर आपको ब्याज नहीं लेना चाहिए। भाई शम्भूशंकरने यह भी बताया कि मुझसे पैसे न मिलने की आपको हमेशा शिकायत रही है और इसी कारण आपको अपने पैसे लगाने पड़े हैं। बिना कारण आपको पैसा न भेजनेकी बात मुझे तो बिलकुल भी याद नहीं पड़ती। कुछ एक बातोंको अच्छी तरह समझ लेनेकी खातिर विलम्ब हुआ हो तो हुआ हो; उसके अलावा तो मैंने कभी कोई विलम्ब नहीं किया है। लेकिन, मान लीजिए कि मैंने अनुचित ढील की हो, तो भी आपको अपने पैसे देनेकी जरूरत नहीं थी और यदि दिये हैं तो अब आपको ब्याज लेनेकी इच्छा नहीं करनी चाहिए। ब्याज की समस्याका समाधान हो जानेपर आपके जो पैसे निकलते हैं, वह मैं परिष्दकी ओरसे चुकाने को तैयार हूँ। भाई शम्भूशंकरसे वेतनके सम्बन्धमें भी बात हुई