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६८०. पत्र: गंगाबहन मजमुदारको

साबरमती आश्रम
शनिवार १२ जून, १९२६

पूज्य गंगाबहन,

आपका पत्र मिला। मेरे साथ रहनेवाले व्यक्तियोंके प्रति जहाँ आपको अविश्वास है, वहाँ मैं क्या कर सकता हूँ? रुईके दो वर्ष पहलेके भाव आदि मैं स्वीकार नहीं कर सकता। मैं तो आजका ही भाव दे सकता हूँ। हाँ, उसके बाद जितना ज्यादा दे सकता हूँ, उतना और देनेका प्रयत्न करूँगा। मैं तो इतना ही चाहता हूँ कि आप अपने किसी विश्वासी व्यक्तिको साथ भेजें और वह तथा मेरे द्वारा नियुक्त व्यक्ति आजकी स्थितिको देखते हुए जो भाव तय करें, वह मैं देनेको तैयार हूँ। मेरी विनती है कि आप इस प्रश्नका शीघ्र निबटारा करें।

बापू

श्रीमती गंगाबहन मजमुदार


नागरवाडा, रीचीरोड


अहमदाबाद

गुजराती पत्र (एस॰ एन॰ १०९४२) की माइक्रोफिल्मसे।

६८१. पत्र: मूलशंकर कानजी भट्टको

साबरमती आश्रम
शनिवार, १२ जून, १९२६

भाईश्री मूलशंकर,

आपके पत्रमें कुछ भी नहीं समझ सका हूँ। नीति अथवा कानूनकी दृष्टिसे यदि आपका लेना निकलता है तो ही मैं हस्तक्षेप कर सकता हूँ। [इस मामलेमें] इन दोमें से मुझे कोई बात नजर नहीं आती।

श्री मूलशंकर कानजी भट्ट


कालबा देवी, नई मार्केट, कमरा नं॰ २७


बम्बई——२

गुजराती प्रति (एस॰ एन॰ १९६१३) की माइक्रोफिल्मसे।