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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

मैंने वहाँके समाजमें अस्पृश्यताका जो कलंक देखा था, वह इस सम्मेलनके प्रयत्नोंके परिणामस्वरूप दूर हो जायेगा।

हृदयसे आपका,

अंग्रेजी प्रति (एस॰ एन॰ १९६१७) की माइक्रोफिल्मसे।

६७९. पत्र: 'फॉरवर्ड' के सम्पादकको

साबरमती आश्रम
१२ जून, १९२६

प्रिय मित्र,

आपके विशेषांके लिए मैं देशबन्धुके सम्बन्धमें जो अपना सबसे अच्छा संस्मरण दे सकता हूँ, वह नीचे दे रहा हूँ:

देशबन्धुके ऐहिक जीवनके अन्तिम दिनोंमें मुझे दार्जिलिंगमें उनके साहचर्यका जो सौभाग्य प्राप्त हुआ, उसमें मैंने देखा कि यद्यपि वे रुग्ण थे, तथापि उनका अधिकांश समय स्वदेश-चिन्तनमें ही बीतता था। जब उन्हें ज्वर होता था, उस समय भी वे मेरे साथ देशोत्थानके लिए बनाई अपनी भावी योजनाओंकी चर्चा किया करते थे। मेरे मनमें अकसर यह सवाल उठता है: ईश्वरने हमें देशबन्धु-जैसा महान् व्यक्ति दिया तो क्या हम अपने-आपको उसका योग्य पात्र सिद्ध करनेकी दिशामें यत्किचित् अथवा पर्याप्त रूपसे प्रयत्नशील हैं?

हृदयसे आपका,

सम्पादक 'फॉरवर्ड'


१९, ब्रिटिश इंडियन स्ट्रीट


कलकत्ता

अंग्रेजी प्रति (एस॰ एन॰ १९६१८) को फोटो-नकलसे।