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६७७. पत्र: कोंडा वेंकटप्पैया गारूको

साबरमती आश्रम
१२ जून, १९२६

प्रिय मित्र,

आपने कितना दुःख-भरा पत्र भेजा है। आपने मुझसे जो अपनत्व दिखाया है, उसके लिए आभारी हूँ। मगर, आखिरकार ये घरेलू परेशानियाँ ही तो मनुष्यके जीवनको अनुभव-समृद्ध बनाती हैं। कारण, इन्हीं परेशानियोंको झेलकर हम यह समझ पाते हैं कि समस्त सांसारिक वैभव, सारी सांसारिक समृद्धि और सुख निस्सार हैं। ये हमें अहिंसाकी, दूसरे शब्दोंमें, विशुद्धतम प्रेमकी खूबीको समझ सकनेकी क्षमता प्रदान करती हैं।

यह जानकर खुशी हुई कि आपकी पत्नी और पुत्री, दोनोंके स्वास्थ्यमें सुधार हो रहा है। आशा है, सुधार बराबर जारी रहेगा और उनका स्वास्थ्य स्थायी रूपसे अच्छा हो जायेगा।

हाँ, देवदासका ऑपरेशन हुआ था। उसे पिछले हफ्ते ही अस्पतालसे फुर्सत दे दी गई। इस समय वह मसूरीमें जमनालालज-के साथ स्वास्थ्य-लाभ कर रहा है। मैं फिनलैंड नहीं जा रहा हूँ। जानेकी चर्चा जरूर थी, लेकिन मैंने न जाना ही तय किया।

हृदयसे आपका,

अंग्रेजी प्रति (एस॰ एन॰ १९६१६) की माइक्रोफिल्मसे।

६७८. पत्र: सी॰ वी॰ कृष्णको

साबरमती आश्रम
१२ जून, १९२६

प्रिय कृष्ण,

आपका पत्र मिला। सम्मेलनके लिए मेरा निम्नलिखित सन्देश है:

मैं सम्मेलनकी पूर्ण सफलताकी कामना करता हूँ। इसका आयोजन पिनाकिनी सत्याग्रह आश्रममें किया जा रहा है, यह बात अपना जीवन निस्स्वार्थ भावसे देशहितके लिए अर्पित कर देनेवाले स्वर्गीय हनुमन्तरावकी स्मृतिमें अर्पित श्रद्धांजलि है। आशा है, वहाँ आयोजित किये जानेवाले विभिन्न सम्मेलनोंमें हाथ-कताई और खादीकी आवश्यकतापर जोर दिया जायेगा और जब मैं उस जिलेमें गया हुआ था उस समय