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पत्र: चुन्नीलाल डी॰ गांधीको

बातके सम्बन्धमें मुझे राह देखनेकी बात ही सूझती है। मणिलालने रेवाशंकरभाईके पास ३२ हजार रुपयेकी रकम जमा करवाई है, यह तो बिलकुल सच है; लेकिन अभी हम उसका उपयोग नहीं कर सकते। मणिलालको अभी तत्सम्बन्धी अधिकारपत्र आना बाकी है। वे जब राजकोटसे वापस आये तब उन्होंने मुझसे कहा था कि यह पत्र थोड़े समयमें आ जायेगा। उस पैसेके मिलनेमें हमें देर हो या न हो, लेकिन जिन पैसोंके लिए मैं बँध गया हूँ वे तो मैं अवश्य चुकाऊँगा। राजकोटके स्कूलके सम्बन्धमें मैंने वल्लभभाईके साथ बात की है। तुम्हें जब जो चीज चाहिए, जरूर मँगवा लेना। राजकोट, जेतपुर आदिमें अन्त्यज शिक्षक तैयार करनेके लिए मैं कपास देने को तैयार हूँ। भाई बलवन्तराय आ गये हैं। मैंने उनसे कहा है कि वे खादी बेचनेके लिए सौ रुपये रखें, यह ठीक है; और बुनकरोंको देनेके लिए 'जब जितनी जरूरत जान पड़े, उतनी रकम मँगायें। भाई शम्भूशंकर यहाँ हैं। उनके साथ मैं गारिया-धारके बारेमें बातचीत कर रहा हूँ। मैं देखता हूँ, उन्होंने बहुत किफायतसे काम लिया है। ऐसा लगता है कि गारियाधारका काम सबसे सस्ता है। मूलचन्दभाईको अन्त्यज आश्रमके लिए साढ़े पाँच हजार भेज चुका हूँ। भाई बलवन्तरायने बोटाकी अन्त्यज शालाके लिए जनवरीतक पाँच सौ रुपयेकी जरूरत बताई थी; ये उन्हें उनकी जमानत पर दिये हैं। अब तुम्हारी किसी बातका जवाब बाकी नहीं रहता।

गुजराती प्रति (एस॰ एन॰ १०९२३) की फोटो-नकलसे।

६७२. पत्र: चुन्नीलाल डी॰ गांधीको

साबरमती आश्रम
११ जून, १९२६

भाईश्री चुन्नीलाल,

आपका पत्र और आपके मित्रकी ओरसे भेजी हुण्डी मिली। पैसोंका उपयोग खादी प्रचारके निमित्त करना चाहता हूँ।

श्रीयुत सी॰ डी॰ गांधी


मार्फत——टाटा मिल्स लिमिटेड
बम्बई हाउस, ब्रूस स्ट्रीट


फोर्ट, बम्बई

गुजराती प्रति (एस॰ एन॰ १९६११) की माइक्रोफिल्मसे।