रखना। जो व्यक्ति यह अनुभव करता है कि ईश्वर उसके भीतर विद्यमान है और वह बराबर उसके साथ है, उसे एकाकीपनका अनुभव हो ही नहीं सकता। मुझे जो-कुछ शान्ति मिली है, इसी विश्वासके बलपर मिली है कि हर चीजके पीछे ईश्वरका हाथ है। फिर विपत्तियाँ विपत्तियाँ नहीं रह जातीं। वे हमारी आस्था और दृढ़ताकी परीक्षा करती है। प्रभुसे प्रार्थना है कि ऊपरसे देखनेमें विपत्ति-जैसे लगनेवाले इस प्रसंगपर आपके मनको शान्ति प्राप्त हो।
हृदयसे आपका,
तीर्थनिवास, पुरी
अंग्रेजी प्रति (एस॰ एन॰ १२०६०) की फोटो-नकलसे।
६७०. पत्र: जेठालाल हरिकृष्ण जोशीको
११ जून, १९२५
यदि भाई नृप्रसादको तुम्हारी जरूरत न जान पड़े और जमनादास आपको चाहे तो आप वहाँ जम जाइए। इससे अधिक अच्छा शिक्षाका क्षेत्र मैं आपके लिए कहाँसे खोज सकूँगा। जो चीज मैं बताऊँगा वह आजकल प्रचलित दृष्टिसे नीरस ही होगी।
मोहनदासके वन्देमातरम्
गुजराती पत्र (एस॰ एन॰ १०९२२) की माइक्रोफिल्मसे।
६७१. पत्र: फूलचन्द कस्तूरचन्द शाहको
साबरमती आश्रम
शुक्रवार, ११ जून, १९२६
तुम्हारे दो पत्र मिले। जमनादासका कार्ड शायद तुम फाइल करना चाहो, इसलिए वापस भेजता हूँ। उसे मैंने लिखा है कि उसे पैसेकी माँग मुझसे ही करनी चाहिए थी, क्योंकि हमारी विषम आर्थिक स्थितिके कारण पैसा देनेका तुम्हारे पास कोई साधन नहीं है। फिनलैंड जाना मुल्तवी रखा है, यह बात बहुत करके मैं तुम्हें लिख चुका हूँ। देवचन्दभाईको भी उत्तर भेज चुका हूँ। आज दीवान साहबका उत्तर आया है, वह भी मैंने उन्हें भेजा है। वे लिखते हैं कि वे इस माहके आखिरमें आयेंगे। रिपोर्ट मिली। देख जाऊँगा। परिषद्की तारीख तय करनेमें ढील हो रही है, यह बात मुझे भी खटकती है। लेकिन मैं पंखहीन हो गया हूँ। इसलिए ऐसी प्रत्येक