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६६८. पत्र: वी॰ एस॰ श्रीनिवास शास्त्रीको

साबरमती आश्रम
११ जून, १९२५

प्रिय मित्र,

आपकी गश्ती चिट्ठी मिली। आपने 'यंग इंडिया' के ताजा अंकमें सोसाइटीकी[१] क्षतिके बारेमें शायद मेरी कुछ पंक्तियाँ देखी होंगी। मैं सोच रहा हूँ कि अपील किसके नाम निकाली जानी चाहिए। क्या आपको कुछ पता है कि मालवीयजी इस सम्बन्धमें किसीसे कुछ बातचीत कर रहे हैं? ऐसे कुछ पैसेवाले लोग हैं, जिनसे हम दोनों ही कुछ करनेको कह सकते हैं, लेकिन मैं जानता हूँ कि मालवीयजी यह काम अधिक भरोसे और सफलताके साथ कर सकते हैं। क्या किसीने श्री अम्बालाल साराभाईसे बात की है? जमनालालजीको मैं लिखूँगा। अभी तो वे कुछ अजीब-सी स्थितिमें हैं। उन्होंने धनोपार्जन बन्द कर दिया है और जो भी कमा रहे हैं, लगभग सबके बारेमें पहलेसे ही तय कर रखा है कि अमुक कार्योंमें इस धनराशिको लगाना है। मैं जानता हूँ कि अब भी उनके पास कुछ रकम वक्त-जरूरतके लिए पड़ी हुई है। मैं समझता हूँ कि वे कुछ अवश्य भेज देंगे, लेकिन उतना नहीं जितना कि यदि वे पहलेकी-सी हालतमें होते तो मैं उनसे उम्मीद रखता या माँगता।

हृदयसे आपका,

परम माननीय वी॰ एस॰ श्रीनिवास शास्त्री
पूना

अंग्रेजी प्रति (एस॰ एन॰ १२०५९) की फोटो-नकलसे।

६६९. पत्र: अमियचन्द्र चक्रवर्तीको

साबरमती आश्रम
११ जून, १९२६

प्रिय भाई,

आपका पत्र मिला। मैं सोच रहा था कि मेरा पत्र कहीं भटक तो नहीं गया। जवाब मिलनेमें देर होनेका दुःखद कारण अब मालूम हुआ है। मगर खुद आपने तो अभीतक, आपपर जो विपत्ति पड़ी, उसकी कोई चर्चा नहीं की है। आपका मन शान्त हो, इसमें मैं क्या सहायता दे सकता हूँ? शान्ति तो अपने भीतरसे ही प्राप्त होगी और उसका रास्ता है, अपने मनको प्रभुमें लगाना और उसमें अटूट विश्वास

  1. सर्वेंट्स ऑफ इंडिया सोसाइटी।