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६६७. पत्र: सतीशचन्द्र दासगुप्तको

साबरमती आश्रम
११ जून, १९२६

प्रिय सतीश बाबू,

आपका पत्र मिला। मैं आपके साथ बहस नहीं करूँगा, क्योंकि आपका सोचना बिलकुल दुरुस्त है। खादी-कार्यके लिए तपस्याकी जरूरत है। आप उसके लिए कटिबद्ध हैं। इसलिए मैं तो इतना ही कह सकता हूँ कि ईश्वर आपकी सहायता करे।

अगर हेमप्रभा देवी अपनी इच्छासे अपना सब कुछ त्याग दें और वे इस तरह अपनेको भार-मुक्त मानकर प्रसन्नताका अनुभव कर सकें तो स्वाभाविक है कि मुझे भी खुशी होगी। मैंने तो एक मित्रकी तरह आगाही-भर कर दी है। मगर आप दोनों वही करें जिस बातके लिए आपकी आत्मा गवाही दे।

बैठककी तिथि बढ़ा दी गई है। अब वह इस महीनेकी २६ तारीखको होगी, ताकि २१को ईदके दिन सभी अपने-अपने घर रह सकें। मैं २६को या उससे पहले आपके आनेका इन्तजार करूँगा।

खेड़ा, कच्छके श्री मुहम्मद हसन चमनके लिए सफरी चरखेके बारेमें मेरा पत्र[१] आपको मिला होगा। अगर न मिला हो तो कृपया वी॰ पी॰ से उन्हें एक चरखा भेज दें।

श्री बिड़लाने जो कुछ किया, उसके बारेमें उन्होंने मुझे लिख भेजा है। आपने इस काममें उनकी रुचि पैदा करके अच्छा किया है। मैंने उन्हें विस्तारपूर्वक लिखा है[२] और कहा है कि वे प्रतिष्ठानकी भरसक सहायता करें।

आपका,

अंग्रेजी प्रति (एस॰ एन॰ १११८२) की माइक्रोफिल्मसे।

  1. देखिए "पत्र: सतीशचन्द्र दासगुप्तको", ३-६-१९२६।
  2. देखिए "पत्र: घनश्यामदास बिड़लाको", ८-६-१९२६।