हाथों काता और बुना गया सूत अपने गुणोंकी दृष्टिसे उनके लिए कभी भी ज्यादा महँगा नहीं हो सकता तो एक दिन खादी भी माँके पकाये चावलों-जैसी गरिमाको प्राप्त होगी। जब हमें इस सीधे-सादे सत्यका एहसास होगा तब कताई केन्द्रोंकी संख्यामें सौ गुनी वृद्धि होगी, भारतकी अंधकारपूर्ण झोपड़ियोंमें आशाकी एक किरण पहुँचेगी और वह किरण हमारी उस स्वतन्त्रताकी सबसे पक्की नींवका काम करेगी, जिसे हम चाहते तो हैं लेकिन जिसको पानेका रास्ता नहीं जानते।
यंग इंडिया, १०-६-१९२६
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६६६. पत्र: जमनालाल बजाजको
साबरमती आश्रम
गुरुवार [१० जून, १९२६][१]
तुम्हारा पत्र मिला। मैं चाहता हूँ कि तुम भी वहाँ लम्बे समयतक रह सको और घूम-फिरकर शरीरको अधिक मजबूत बना लो। चक्कर वगैरह बिलकुल बन्द हो जाने चाहिए। उसके लिए मुख्यतया खुली हवा और कसरत ही सही इलाज है। तुम्हारे लिए कमसे-कम दस मीलकी कसरत हमेशा होनी चाहिए। यह जरा भी अधिक है, यह बात मैं नहीं मानता। चर्खा-संघकी समितिकी सभा २६ वीं को है। इसलिए तबतक तो तुम्हारा यहाँ आनेका सवाल नहीं उठता। अभी दिल्ली और रामपुरा आश्रममें रुकनेका लोभ न करो, यह ठीक है। मसूरीमें जितने दिन बिता सको, उतने बिता दो, ऐसा चाहता हूँ। लक्ष्मीदासको कहना कि मुझे समय-समयपर पत्र लिखता रहे। तबीयत खूब सुधार ले। मणिको लेकर वेलाबेन आज शामको आयेगी।
बापूके आशीर्वाद
नारायण निवास
मसूरी, यू॰ पी॰
गुजराती पत्र (जी॰ एन॰ २८६६) की फोटो-नकलसे।
- ↑ डाककी मुहरसे।