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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

किसी भी खादी-केन्द्रके कामको लीजिए। केन्द्रीय कार्यालयमें कातनेवालोंके लिए बिनौलेवाली रुई जमा की जाती है, फिर ओटनेवाले शायद केन्द्रमें ही उसकी ओटाई करते हैं। उसके बाद वह रुई धुननेवालोंके बीच बाँट दी जाती है, जो उसे धुनकर उसकी पूनियाँ बनाकर वापस कर देते हैं। अब ये पूनियाँ कताईके लिए कातनेवालोंके बीच बाँट दी जानेको तैयार हैं। कातनेवाले अपना-अपना सूत लेकर प्रति सप्ताह केन्द्रमें आते हैं और अपना सुत देकर और नई पूनियाँ तथा मजदूरी लेकर चले जाते हैं। इस प्रकार प्राप्त सूत बुननेके लिए बुनकरोंको दे दिया जाता है, जो उससे खादी बुनकर बिक्रीके लिए फिर केन्द्रको लौटा देते हैं। अब इस खादीको खादी पहननेवालों अर्थात् जनताको बेच देना है। इस प्रकार केन्द्रीय कार्यालयको तमाम धर्मों, जातियों और रंगोंके लोगोंसे निरन्तर एक मानवीय सम्पर्क बनाये रखना पड़ता है। कारण, केन्द्रको कोई लाभ नहीं कमाना है, उसे अत्यन्त जरूरतमन्द लोगोंके अलावा और किसीकी एकान्त चिन्ता नहीं करनी है। केन्द्र उपयोगी हो सके, इसके लिए उसे हर तरहसे दोषरहित होना चाहिए। उसके और इस विशाल संगठनके संघटकोंके बीचका सम्बन्ध विशुद्ध रूपसे आध्यात्मिक और नैतिक है। इस प्रकार कताई केन्द्र एक सहकारी समिति है और ओटनेवाले, धुननेवाले, बुननेवाले तथा खरीदार लोग इसके सदस्य हैं——सभी पारस्परिक सद्भावना और सेवाके सूत्रमें आबद्ध हैं। इस समितिमें एक-एक चीजके बारेमें इस बातका लगभग निश्चित पता रखा जा सकता है कि वह कब, किसके हाथोंसे और किस स्थितिसे गुजर रही है। इन केन्द्रोंके विकासके साथ-साथ होगा यह कि देशके ऐसे युवक, जिनके हृदयमें देशभक्तिकी शिखा प्रदीप्त है और जिनकी ईमानदारीको दुनियाका कोई भी प्रलोभन डिगा नहीं सकता, इन केन्द्रोंकी ओर आकृष्ट होते जायेंगे और फिर ये ऐसे प्रकाश-केन्द्रोंका कार्य करेंगे——बल्कि ऐसा कहें कि इन्हें करना चाहिए——जो ग्रामवासियोंके बीच स्वास्थ्य, सफाई और छोटे-मोटे रोगोंके घरेलू उपचारके बुनियादी ज्ञानकी रश्मियाँ विकीर्ण करेंगे और उनके बच्चों के बीच ऐसी शिक्षाकी ज्योति जलायेंगे जो वास्तवमें उनकी आवश्यकताओंके उपयुक्त हों। अभी वह समय नहीं आया है। हाँ, शुरुआत हो गई है। लेकिन यह आन्दोलन धीरे-धीरे ही आगे बढ़ेगा। जबतक कि खादी भी बाजारमें घी या उससे भी अच्छा उदाहरण लीजिए तो डाक टिकटोंकी तरह बिक्रीकी बहुत ही आम चीज नहीं बन जाती तबतक कोई ठोस नतीजा दिखा सकना असम्भव है। इस समय तो बहुत सारी शक्ति लोगोंको यह शिक्षा देनेमें लगानी है कि वे दूसरे सभी कपड़ोंका मोह छोड़कर सिर्फ खादी ही खरीदें——ठीक उसी प्रकार जिस प्रकार कोई बच्चा अपनी माँके हाथों पकाये चावलके बारेमें क्षण-भरको भी यह सोचे बिना कि वह चावल कैसा है और उसमें कितना खर्च लगा है, उस चावलको खाकर पूरे सन्तोषका अनुभव करेगा। और अगर वह यह सोचने भी बैठेगा कि वह चावल कैसा है और उसमें कितना खर्च हुआ है तो वह पायेगा कि उसकी माँने उसे जिस मेहनत और स्नेहसे पकाया है, उसके कारण यह किसी दूसरे चावलसे कई गुना बेशकीमती है और जब मादरे हिन्दके बच्चे अपनी नींदसे जागेंगे और देखेंगे कि उसकी बेटियाँ और बेटोके