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६६५. कताईमें सहयोग

मेरे एक प्रिय बन्धु और उनके कुछ मित्रोंके मनमें एक प्रश्न उठा है। इन बन्धुने मुझसे उसका उत्तर माँगा है। प्रश्न है:

क्या कताईमें सहयोग है? क्या यह वास्तवमें लोगोंको विशुद्ध व्यक्तिवादी तथा आत्म-केन्द्रित नहीं बना देती है; और क्या उसके प्रभावसे वे उसी तरह नहीं बन जाते जैसे एक ढेरमें पड़े बहुत-से कंकड़, जिनका परस्पर कोई सम्बन्ध नहीं होता।

मैं जो सबसे संक्षिप्त और निर्णयात्मक उत्तर दे सकता हूँ वह यह कि आप किसी सुसंगठित खादी केन्द्रमें जाकर खुद ही वस्तुस्थिति-को देखिए-परखिए। फिर आपको पता चल जायेगा कि सहयोग के बिना कताई सफल हो ही नहीं सकती।

मगर मैं जानता हूँ कि यह उत्तर संक्षिप्त भले ही हो किन्तु उन लोगोंके लिए बेकार है, (और ऐसे लोग ही बहुसंख्यक हैं) जो किसी खादी केन्द्रमें जाकर वहाँकी स्थिति देखने-परखनेके लिए समय नहीं निकाल सकते। इसलिए मैं एक खादी केन्द्रका यथासम्भव अच्छेसे-अच्छे ढंगसे वर्णन करके उन्हें इस बातकी प्रतीति करानेकी कोशिश करूँगा।

पिछले साल मद्रासकी एक सहकारी समितिमें बोलते हुए मैंने कहा था कि हाथ कताईके द्वारा मैं इतनी बड़ी सहकारी समिति स्थापित करनेकी कोशिश कर रहा हूँ, जितनी बड़ी समिति दुनियाने कभी नहीं देखी है। यह कोई झूठा दावा नहीं है। हाँ, यह दावा बहुत बड़ा दावा जरूर हो सकता है। यह दावा झूठा इसलिए नहीं है कि जबतक करोड़ों लोग कताईके काममें परस्पर सहयोग नहीं करते तबतक इसका उद्देश्य ही सिद्ध नहीं हो सकता।

इसका उद्देश्य है, मजबूरीकी बेकारी और मुख्य रूपसे इस बेकारीसे उत्पन्न गरीबीको दूर भगाना। यह तो मानना ही पड़ेगा कि यह उद्देश्य महान् है। अतएव इसके लिए प्रयत्न भी उतना ही अधिक करना है।

यह सहयोग प्रारम्भिक अवस्थासे ही शुरू होना चाहिए। अगर कताई लोगोंको आत्म-निर्भर बनाती है तो साथ ही यह लगभग हर कदमपर पारस्परिक निर्भरताकी आवश्यकता समझनेका भी अवसर देती है। किसी साधारण कत्तिनको यह भरोसा होना चाहिए कि उसके फालतू सूतको लोग खरीद ही लेंगे। वह उसे बुन नहीं सकती। बहुत सारे लोगोंके सहयोगके बिना उसके सूतकी बिक्रीका निश्चित प्रबन्ध नहीं होगा। जिस प्रकार खेती करनेमें और खेतीकी उपजकी खपतके सम्बन्धमें करोड़ों लोगोंके सहयोगके कारण ही, वह सहयोग कितना भी थोड़ा क्यों न हो, कृषि-कार्य सम्भव है, उसी प्रकार कताई भी तभी सफल होगी जब उतने ही बड़े पैमानेपर सहयोग हो।