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६६३. निरर्थक आश्वासन

भारत सरकारने एक विज्ञप्ति जनताको सूचित किया है कि दक्षिण अफ्रिकाकी संघ सरकारने निम्नलिखित आश्वासन दिया है:

संघ सरकारका फिलहाल ऐसा कोई इरादा नहीं है कि वह खनिकों और कर्मचारियोंसे सम्बन्धित विनियमोंको उन क्षेत्रोंसे बाहर कहीं और भी लागू करे जिन क्षेत्रोंमें वे 'ताज बनाम हेलडिक स्मिथ' के मामलेमें सर्वोच्च न्यायालयके ट्रान्सवाल प्रान्तीय विभागके निर्णयसे पूर्व लागू थे। उस मामलेमें यह निर्णय दिया गया था कि ये विनियम, जो वास्तवमें दक्षिण आफ्रिकामें १९११ से और कुछ प्रान्तोंमें तो उससे भी अनेक वर्ष पहलेसे लागू हैं, उस अधिनियमके खण्डोंके अन्तर्गत वैध नहीं हैं जिस अधिनियमके अधीन ये जारी किये गये हैं।

विज्ञप्तिमें आगे कहा गया है कि:

भारत सरकारको यह आश्वासन भी दिया गया है कि अगर भविष्यमें कभी इन विनियमोंकी व्याप्तिको इस प्रकार बढ़ानेकी कोई तजवीज की गई तो संघकी सीमामें रहनेवाले ऐसे तमाम पक्षोंको, जिनका इस मामलेसे सम्बन्ध हो सकता है, अपनी-अपनी बात कहनेका उचित अवसर दिया जायेगा।

मैं इन दोनों आश्वासनोंको मात्र धोखेकी टट्टी मानता हूँ। कारण, संघ-सरकार अपनी लोक-सभामें पूछे गये प्रश्नोंके उत्तरमें बार-बार यही बात कहती रही है, जो अब उसने भारत सरकारसे कही है अर्थात् यह कि फिलहाल उसका ऐसा कोई इरादा नहीं है कि इन विनियमोंको वह उन क्षेत्रोंके अलावा और कहीं लागू करेगी जिन क्षेत्रोंमें वे उक्त निर्णयसे पहले लागू थे। नये विधेयकका दंश तो इस बातमें छिपा हुआ है कि वह सरकारको, यदि उसे ठीक लगे तो, कितना कुछ कर सकनका अधिकार देता है। यह बतनियों और दक्षिण आफ्रिकावासी भारतीयोंके सिरपर एक कमजोर धागेसे लटकती हुई तलवारके समान है, क्योंकि इसका प्रयोग भारतीयोंके विरुद्ध भी ठीक उसी तरह किया जा सकता है, जिस तरह वतनियोंके विरुद्ध। इसलिए, यह विधेयक ज्यादासे-ज्यादा जितना अपमानजनक बनाया जा सकता है उतना अपमानजनक है। हाँ, यह भारतीयोंके भौतिक हितोंको उतना अधिक प्रभावित नहीं करता जितना कि वर्ग-क्षेत्र विधेयक (क्लास एरियाज बिल) करता है। मगर इसका कारण संघ-सरकारकी सद्भावना नहीं है बल्कि यह है कि रंग-भेद विधेयकमें जिस प्रकारके साधारण या विशेष कुशलताकी अपेक्षा रखनेवाले श्रमका विचार किया गया है उस तरहका श्रम भारतीय आम तौरपर नहीं किया करते हैं। उनकी भौतिक समृद्धिपर तो प्रभाव पड़ता है उनके व्यापार और उनके रिहायशी