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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

 

खादी प्रदर्शनियाँ

देश भरके खादी कार्यकर्त्ता इस बातका प्रत्यक्ष अनुभव कर रहे हैं कि खादीको लोकप्रिय बनाने और अन्तमें करघेपर खादीके रूपमें बुने जानेतक रुईको जिन प्रक्रियाओंसे गुजरना पड़ता है, उन प्रक्रियाओंको लोगोंको समझानेकी दृष्टिसे खादी-प्रदर्शनियाँ कितनी उपयोगी हैं। हालमें ही रत्नागिरी जिलेमें चलती-फिरती प्रदर्शनीका आयोजन किया गया। प्रदर्शनी क्षेत्रमें आठ गाँव आते थे। इन सभी गाँवोंमें हाथ-कताईकी तमाम प्रक्रियाओंका——धुनाई, चरखे और तकलीपर कताई, सूतकी मजबूती जाँचनेके तरीकों आदिका——प्रदर्शन किया गया। देशी रंग, नेताओं द्वारा काते गये सूत, किस्म-किस्मकी खादी और कुछ दूसरी स्वदेशी चीजें भी दिखाई गईं। जब इन गाँवोंमें प्रदर्शनी चल रही थी, उसी बीच वहाँ खादी बेचनेके लिए फेरियाँ भी लगाई गई। एक वाचनालय की भी व्यवस्था कर दी गई थी, जिसमें खादी-सम्बन्धी साहित्य पढ़ा जा सकता था। मैजिक लैन्टर्नसे पर्देपर तस्वीरें भी दिखाई गईं । गायक-वृन्दोंने गीत और भजन गाये। लोगोंको अखिल भारतीय देशबन्धु स्मारक कोषमें चन्दा देनेके लिए भी प्रोत्साहित किया गया और ऐसी व्यवस्था की गई जिससे वे वहींपर चन्दा दे सकें। जाने-माने वक्ताओंने खादीपर भाषण दिये। सारा प्रबन्ध बहुत ही कुशल और मितव्ययी ढंगसे किया गया था। कुल खर्च ६२२ रुपये ९ आने ११ पाई आया। इसमें से कुछ खर्च तो खादीकी बिक्रीसे हुए लाभसे ही निकल आया। इसमें कोई सन्देह नहीं कि ऐसी प्रदर्शनियोंका शिक्षणकी दृष्टिसे बड़ा महत्त्व है; और हो सकता है आगेके अनुभवोंके आधारपर इस दिशामें सुधार होनेपर इन प्रदर्शनियोंके लिए ऊपरसे कुछ खर्च न करना पड़े और प्रदर्शनियोंसे हुई आयसे ही सारा खर्च निकल जाये।

[अंग्रेजीसे]
यंग इंडिया, १०-६-१९२६

६६२. खादीकी प्रगति

खादी प्रतिष्ठानने तीन सालमें खादीके उत्पादन और उसकी बिक्रीमें जो प्रगति की है, उसका अन्दाजा देनेवाला एक लेखाचित्र[१] नीचे दिया जा रहा है। पाठकगण एक नजरमें देख सकते हैं कि प्रतिष्ठानने उत्पादन और बिक्रीमें कितनी अधिक प्रगति की है।

[अंग्रेजीसे]
यंग इंडिया, १०-६-१९२६
  1. लेखाचित्र यहाँ नहीं दिया जा रहा है।