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यहाँ हम सरकार द्वारा कताईका महत्त्व स्वीकार किये जानेका कमसे-कम एक उदाहरण तो देख रहे हैं। इस सीधे-सादे यन्त्रकी सम्भावनाओंसे लोग जितना अधिक परिचित होंगे, उनमें इसका उतना ही अधिक प्रचार होगा।

अकालसे राहतके लिए कताई

काठियावाड़ राजकीय परिषद् काठियावाड़, अमरेलीमें और उसके आसपासके क्षेत्रमें अकाल-सहायता कार्यके तौरपर एक खादी केन्द्र चला रही है। वहाँ वास्तवमें अकालकी स्थिति नहीं है, फिर भी पर्याप्त वर्षा न होनेके कारण पिछले तीन वर्षसे औसतसे कम खेती होती रही है। परिणामतः बहुतसे काश्तकारोंकी स्थिति यह हो गई है कि वे किसी तरह खाने-पहनने-भरको अनाज उत्पन्न कर पाते हैं। इसी केन्द्रमें किसानोंकी लगभग एक हजार औरतें हाथ-कताईसे प्राप्त मजदूरीसे अपने-अपने परिवारोंकी अल्प आयको थोड़ा-बहुत बढ़ानेमें योग दे रही हैं। बेकार रहने और अधपेट खाकर दिन काटनेके बजाय, ये स्त्रियाँ कताईके काममें अपनी क्षमता अथवा इच्छाके अनुसार जितना समय लगा पाती हैं, उसके हिसाबसे ये प्रतिमास एकसे लेकर तीन रुपये तक कमा रही हैं। कताईके चलनके फलस्वरूप उस क्षेत्रके धुनियों, बुनकरों और धोबियोंको भी काम मिल जाता है। इस तरह तैयार की गई खादीको बेचनेमें जरूर मुश्किल पड़ी। मगर इस कठिनाईको हल करनेके लिए श्री अब्बास तैयबजी आगे आये। खादी बेचनेके उद्देश्यसे उन्होंने काठियावाड़के बहुत-से हिस्सोंका दौरा किया। इस काममें उन्हें श्रीयुत अमृतलाल सेठ और रामदास गांधीकी भी सहायता मिली। यहाँ खादीको उतना सस्ता बेच पाना सम्भव नहीं था, जितना सस्ता भारतके कुछ दूसरे हिस्सोंमें बनी खादीको बेचा जा सकता है। उन हिस्सोंमें तैयार की जानेवाली खादीके सस्ती होनेका कारण यह है कि वहाँ धुनिये, बुनकर, धोबी और यहाँतक कि कातनेवाले भी उतनी मजदूरी नहीं माँगते या पाते हैं, जितनी कि ये लोग काठियावाड़में माँगते या पाते हैं। लेकिन श्री अब्बास तैयबजीने अपने इलाकेके प्रति लोगोंकी प्रेम और कर्त्तव्यकी भावनाको जगाकर यह काम सफलतापूर्वक सम्पन्न किया। उन्होंने मुझे लिखा है कि लोगोंने कहीं भी उन्हें निराश नहीं किया, बल्कि ज्योंही उनकी समझमें यह बात आती थी कि इस खादीका क्या महत्त्व है, वे उनके पास जितनी खादी होती थी, सब ले लेते थे। इस खादी और दूसरी खादीके साथ भी एक दिलचस्प बात यह रही है कि जैसे-जैसे इसकी किस्ममें सुधार होता गया है, वैसे-वैसे इसकी कीमत कम होती गई है। और अभी भी खादीकी किस्ममें सुधार और दामोंमें कमीकी काफी गुंजाइश है। कीमतोंमें कमी आना और किस्ममें उत्तरोत्तर सुधार होना धुनाई और कताईमें क्रमिक सुधारपर निर्भर करता है। इन दोनों प्रकियाओं पर अधिकाधिक ध्यान दिया जा रहा है। लेकिन, इस सिलसिलेमें जो सबसे उल्लेखनीय बातें हैं, उनमें से एक तो यह है कि यह उन गरीब महिलाओंको रोजी और मजदूरी देनेका एक साधन रही है, जिन्हें इसके बिना न काम मिलता, न मजदूरी; और दूसरी बात यह कि अगर खादीकी माँग जारी रखी जा सके तो इस कामके लिए असीम सम्भावनाएँ हैं।