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६६०. पत्र: पैरीन कैप्टेनको

साबरमती आश्रम
९ जून, १९२६

मैंने यह मान लिया है कि इस पूरे महीने-भर आप बम्बईमें ही रहेंगी। मेरा खयाल है कि मैंने आपको बताया था कि एक जर्मन बहन आश्रम आ रही हैं। उनका नाम हेलेन हाउडिंग है। वे २५ को 'राजमाक' नामक जहाजसे आनेवाली हैं। मैं चाहूँगा कि आप उनसे मिलकर उन्हें अपने घर ले जायें और फिर उसी दिन साबरमती भेज दें। मुझे तार कर दीजिएगा कि वे किस ट्रेनसे बम्बईसे रवाना हुई हैं। यदि आपके उस दिन बम्बई न रहनेकी सम्भावना हो या आपके लिए उनसे जहाजपर मिलने जाना असम्भव हो तो कृपया मुझे वैसा सूचित कीजिएगा।

क्या नर्गिसबहन और मीठूबहन वापस आ गई हैं? यदि आ गई हों तो कुशलक्षेम लिखिएगा।

आपका,

श्रीमती पैरीन कॅप्टेन

अंग्रेजी प्रति (एस॰ एन॰ १९६१०) की माइक्रोफिल्मसे।

६६१. टिप्पणियाँ

भारत सेवक समाज (सर्वेन्ट्स ऑफ इंडिया सोसाइटी)

हालके अग्निकाण्डमें हुई अपनी क्षतिके सम्बन्धमें समाज द्वारा जारी किये गये विवरणमें जो चीज मनको सबसे अधिक प्रभावित करनेवाली है वह प्रेसके कर्मचारियोंका इस क्षतिमें हिस्सा बँटानेका प्रस्ताव है। यह इस बातका द्योतक है कि समाज अपने कर्मचारियोंका कितना अधिक ध्यान रखता आया है। अगर समाजकी क्षति उन्हें अपनी निजी क्षति-जैसी नहीं लगती तो वे यह स्वार्थ-रहित और उदारतापूर्ण प्रस्ताव नहीं करते कि वे आधा बोनस छोड़ देंगे और बिना कोई अतिरिक्त पारिश्रमिक लिये हर रोज आठके बजाय दस घंटे काम करेंगे। मुद्रकने तो छः महीनेतक कुछ भी वेतन लिये बिना काम करनेका प्रस्ताव रखा है। पूँजी और श्रमके बीच इस पारस्परिक सद्भाव और सहयोगकी भावनाके लिए समाज और उसके कर्मचारी बधाईके पात्र हैं।

गोखलेके जीवनसे सम्बन्धित कीमती पाण्डुलिपियों और 'ज्ञानप्रकाश' की पिछले अस्सी वर्षोंकी फाइलोंके जल जानेसे जो क्षति हुई है, वह अपूरणीय है। किन्तु, प्रकृति हमें इसी प्रकार गहरे धक्के पहुँचाकर याद दिलाती है कि ईश्वरके अतिरिक्त

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