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पत्र: शान्तिकुमार मोरारजीको

काउन्सिलके बारेमें मैं क्या लिखुँ? पूज्य मालवीयजीसे इस बारेमें मेरा तात्विक मतभेद है। मैं केवल इतना ही कह सकता हूँ कि यदि आप मानें काउन्सिलोंमें आपके जानेसे लोकोपकार होगा तो आप अवश्य जावें। स्वराज दलका विरोध और राजनैतिक शिक्षण प्राप्तिका प्रलोभन यह दोनों बातें नैतिक दृष्टिसे ख्याल करनेमें अप्रस्तुत है। यदि आप ऐसा समझते हैं कि आपने काउन्सिलमे न जानेकी प्रतिज्ञा मेरे समक्ष की है तो इस समझको आप दूर करें। ऐसा कोई प्रतिबंधका निश्चयपूर्वक स्वीकार नहीं किया है। ऐसे बंधनसे मुक्त समझकर केवल औपचारिक दृष्टिसे अर्थात् नैतिक दृष्टिसे आप काउन्सिलमें जानेके बारेमें आपका अभिप्राय निश्चित करें।

आपका,
मोहनदास

मूल पत्र (सी॰ डब्ल्यू॰ ६१२८ तथा एस॰ एन॰ १९६०८) से।

सौजन्य: घनश्यामदास बिड़ला

६५८. पत्र: शान्तिकुमार मोरारजीको

साबरमती आश्रम
मंगलवार ८ जून, १९२६

भाई शान्तिकुमार,

महादेवको लिखा तुम्हारा पत्र पढ़ा। अपने जन्म-दिवसके आम भेजे थे तो उनके साथ आशीर्वाद तो माँग लिया होता। वैसे, वह तुम्हें हमेशा है ही। तुमने सात वर्षसे आम किसलिए छोड़ रखे हैं? ईश्वर तुम्हें दीर्घायु करे।

बापूके आशीर्वाद

गुजराती पत्र (सी॰ डब्ल्यू॰ ४७०२) से।

सौजन्य: शान्तिकुमार मोरारजी