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६५३. पत्र: अब्बास तैयबजीको

साबरमती आश्रम
८ जून, १९२६

प्रिय मित्र,

आपका पत्र मिला। 'बॉम्बे क्रॉनिकल' के लिए लेख अवश्य लिखिए। मैं आपके विचारोंसे अधिकांशतः सहमत हूँ। लेकिन शायद शिक्षा ही एकमात्र उपाय नहीं है। यदि केवल यही उपाय है तो एकताके लिए बहुत समयतक प्रतीक्षा करनी पड़ेगी। आवश्यकता तो हृदयको शिक्षित करने, हृदयमें स्नेह-सद्भावना भरने की है। मेरी रायमें, जो लोग प्रत्यक्षतः दंगा-फसाद करते हैं वे भले ही गुंडे हों, लेकिन उनके पीछे दिमाग तो आखिरकार शिक्षित हिन्दुओं और मुसलमानोंका ही काम करता है। यदि उसी शिक्षाका विस्तार करना हो तो फिर हिन्दुस्तानका तो भगवान ही मालिक है। लेकिन 'क्रॉनिकल' के लिए लेख लिखनेमें कोई हर्ज नहीं है और यह भी निश्चित ही मानिए कि अगर आप लेख न लिखें तो भी कोई हानि न होगी। मामलेको थोड़ा ठण्डा पड़ जाने दें तो अच्छा हो। वे लोग लड़ते-झगड़ते रहें, इसके अलावा फिलहाल कोई चारा नहीं है।

रामदास एक दिनके लिए यहाँ आया था। फिर देवदासको देखने बम्बई चला गया है और कह गया है कि लौटते समय आपसे मिलने और आपको नमस्कार करनेके लिए बड़ौदा उतर जायेगा।

उसका कहना है कि यदि आप न होते तो उसको अपनी खादीकी बिक्रीमें कोई सफलता न मिली होती। सफेद दाढ़ीकी अपनी ही खूबियाँ हैं।

आपका,
मो॰ क॰ गांधी

अंग्रेजी पत्र (एस॰ एन॰ ९५५६) की फोटो-नकलसे।