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६५१. भेंट: समाचारपत्रोंको

अहमदाबाद,
[८ जून, १९२६ या उसके पूर्व][१]

हालमें ही भारत सरकारने रंग-भेद विधेयकके बारेमें जो विज्ञप्ति[२]निकाली है, उसके सम्बन्धमें मुलाकातीने जब महात्मा गांधीकी राय जाननी चाही तो उन्होंने कहा:

मेरे विचारसे तो इस विज्ञप्तिसे हमारी स्थितिमें किसी प्रकारके सुधारका संकेत नहीं मिलता। यह ठीक है कि संघ सरकारने बार-बार कहा है कि फिलहाल विधेयकके प्रभाव-क्षेत्रको 'ताज बनाम हेल्डिंक स्मिथ' के मामलेके निर्णयसे पहलेकी स्थितिकी अपेक्षा अधिक विस्तृत करनेका उसका कोई इरादा नहीं है। लेकिन, विधेयकके विरोधी लोग इसकी निन्दा इस सिद्धान्तके आधारपर करते हैं कि इस विधेयकके अन्तर्गत अधिकारियोंको प्रसंग आनेपर अपने विवेकके अनुसार जिन अधिकारोंके प्रयोगकी सत्ता दी गई है, वे अधिकार विधेयकके प्रभाव-क्षेत्रको उक्त निर्णयसे पहलेकी स्थितिकी अपेक्षा अधिक विस्तृत कर देते हैं और यह न केवल वतनी लोगों बल्कि भारतीयों पर भी लागू किया जा सकता है। और इस बातसे भी किसी प्रकारका संतोष प्राप्त नहीं किया जा सकता कि जब भी इस विधेयकके अन्तर्गत बनाये जानेवाले विनियमोंके प्रभाव-क्षेत्रका विस्तार किया जायेगा तब दक्षिण आफ्रिकी संघकी सीमाके भीतरके सभी पक्षोंकी राय लेकर ही वैसा किया जायेगा। यह विधेयक किसीके द्वारा सरकारसे अपना निवेदन करनेका अधिकार तो नहीं छीनता, लेकिन अबतक तो सभीको यह बात मालूम हो गई है कि ऐसे पक्षोंके निवेदनोंका परिणाम क्या होता है जिनमें अपनी इच्छाको कार्यान्वित करानेकी शक्ति नहीं है। इस आश्वासनका मतलब कहीं यह तो नहीं है कि संघसे बाहरके पक्षोंको-जैसे कि भारत सरकारको——अपनी बात कहनेका कोई अधिकार नहीं होगा?

[अंग्रेजीसे]
बॉम्बे क्रॉनिकल, ९-६-१९२६
  1. संवाददाता द्वारा प्रेषित भेंट वार्ता इसी तारीखके अन्तर्गत प्रकाशित की गई थी।
  2. देखिए "निरर्थक आश्वासन", १०-६-१९२६।